देवी अनुसुइया, अत्तरी ऋषि की पत्नि थीं। अत्तरी ऋषि सप्त ऋषि में से एक हैं और ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। देवी अनुसुइया का सतित्व अत्यंत शक्तिशाली था। उनके समान सती तीनों लोकों में कोई नहीं थी। ये कथा अत्तरी ऋषि ने श्री राम को सुनाई थी जब वे वनवास के समय उनसे मिलने गए थे। श्री राम और हनुमान की सम्पूर्ण कहानी पढ़ें।
एक बार देवर्षि नारद ब्रह्मलोक गए। वहां उन्होंने देखा कि ब्रह्माणी को इस बात का अभिमान हो गया है कि ब्रह्म देव के साथ मिलकर संसार की रचना वो करती हैं तो उनसे बेहतर स्त्री कोई और हो ही नहीं सकती।
नारद जी ने अनुसुइया कि प्रशंसा के गीत गाना आरम्भ कर दिया। उन्होंने कहा की अनुसुइया से बड़ी सती ना कोई है और ना होगी। अनुसुइया के तेज़ के आगे सारी शक्ति छोटी पड़ जाती है। इतना कह कर नारद जी वहां से चले गए।
ब्रह्माणी ने ब्रह्मा जी को कहा कि वो उसके सतित्व की परीक्षा लें और नारद जी का भ्रम तोड़ दें। ब्रह्मा जी ने समझाने का प्रयत्न किया कि वो अनुसुइया से प्रतिस्पर्धा ना करें उसी में भलाई है परन्तु वे ना मानी।
फिर नारद जी कैलाश पहुंचे। माता पार्वती ने देवर्षि नारद को प्रणाम किया तो नारद जी बोले – ये क्या अनर्थ कर रहीं हैं माता? भला कोई माता अपने पुत्र को प्रणाम करती हैं? अगर प्रणाम करना ही है तो देवी अनुसुइया को कीजिये क्योंकि उनके जैसी सती इस संसार में कोई नहीं है। ये कह कर नारद जी चले गए। देवी पार्वती ने शिव जी को कहा कि वो अनुसुइया की परीक्षा लें। शिव जी ने मना किया परन्तु देवी नहीं मानी।
उसके बाद नारद जी ने लक्ष्मी जी को भी अनुसुइया के प्रति रुष्ठ कर दिया।
त्रिदेव एक साथ साधू का वेश रख कर देवी अनुसुइया के पास भिक्षा लेने गए और कहा की उन्हें अपना तन ढकने के लिए देवी कि चुनरी चाहिए वरना वो लौट जायेंगे। देवी ने कहा कि कोई भी साधू उनके द्वार से खाली हाथ नहीं जाता है। परन्तु वो एक पतिव्रता स्त्री हैं। बिना चुनरी के या तो उनके पति उन्हें देख सकते हैं या फिर उनकी संतान। तो अगर उन्हें चुनरी चाहिए तो वे देवी की संतान बन जाएँ। त्रिदेव ने तथास्तु कहा और तीनों नवजात शिशु में परिवर्तित हो गए।
माता ने तीनों को अपनी चुनरी से ढका और अपना दूध पिलाया। देवी अनुसुइया त्रिदेव की माँ बन चुकी थीं। अब उनसे ज्यादा शक्तिशाली इस पूरे ब्रह्माण्ड में कोई नहीं था। देवी के सतित्व के आगे पूरा ब्रह्माण्ड छोटा पड़ चुका था। हर शक्ति, हर विद्या, हर माया, सबकुछ देवी के अधीन था।
जब बहुत समय तक त्रिदेव नहीं लौटे तो माताओं को चिंता होने लगी। नारद जी बोले कि माताओं अब तो आप लम्बी प्रतीक्षा कीजिये। प्रभु अब जल्दी तो नहीं आने वाले। ये सुन कर त्रिदेवियाँ भयभीत हो गयीं और दौड़ते हुए अनुसुइया के पास पहुंची।
उन्होंने देखा की त्रिदेव तो बालक बने पालने में मज़े से झूला झूल रहे हैं। अब त्रिदेवियाँ माता से हाथ जोड़ कर विनती कर रहीं थीं कि वो उनके स्वामियों को लौटा दें। अलग अलग कारण दे कर उन्हें वापस पाने कि गुहार लगा रही थीं। कभी कहती कि त्रिदेवों के बिना उनका क्या होगा तो कभी कहती कि संसार का क्या होगा। कभी सारी गलती नारद जी की बता कर स्वयं को निर्दोष साबित कर रहीं थीं।
देवी अनुसुइया को अपने पुत्रों से मोह हो चुका था। फिर भी उन्होंने बालकों को आज्ञा दी कि वो अपने असली स्वरुप में आ जाएँ। त्रिदेव अपने असली स्वरुप में आ गए। तब अनुसुइया ने त्रिदेवों को आदेश दिया कि वो उनके घर में जन्म लें। माता की आज्ञा त्रिदेवों ने सर झुका कर स्वीकार की और उनके घर दत्तात्रेय का जन्म हुआ जिसके तीन शीश थे – ब्रह्मा, विष्णु और महेश।
त्रिदेवों को पाकर त्रिदेवियों को संतोष हुआ और देवी अनुसुइया को सर्वश्रेष्ठ सती स्वीकार किया।
References:
Guru Charitra by Swami Samarth and Vishwa Kalyan Kendra
Sri Dattatreya – Symbol and Significance
You may download Baba Ramdevpir Alakhdhani ni Aarti Mp3 song from the below wizard -…
Ishardan Gadhvi Hanuman Chalisa mp3 song download will allow you to listen the best Hanuman…
You may download Jaharveer Goga Chalisa Mp3 song from the below wizard - [wbcr_php_snippet…
You may download Guru Gorakhnath Chalisa Mp3 song from the below wizard - [wbcr_php_snippet…
You may download Bahuchar Maa Ni Aarti Mp3 song from the below wizard - …
You may download Dashama No Thal Mp3 song from the below wizard - [wbcr_php_snippet…
Leave a Comment