गनगौर व्रत 2018 व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियाँ व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस दिन पार्वती ने भगवान शंकर से सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त किया था तथा पार्वती ने अन्य स्त्रियों को सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया था।
इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर और सिन्दूर चढ़ाया जाता है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है। विवाहित स्त्रियाँ गौर पर चढ़ाये सिन्दूर को अपनी माँग में लगाती हैं।
एक बार भगवान शंकर, पार्वती जी एवं नारद जी के साथ भ्रमण के लिए निकले। वे चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुँचे। उनका आना सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरन्त पहुँच गईं । पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटीं।
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धनी वर्ग की स्त्रियाँ थोड़ी देर बाद अनेक प्रकार के पकवान लेकर पार्वती जी के पास पहुंचीं। शंकर जी कहने लगे, “तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी?”
पार्वती जी बोली, “प्राणनाथ। उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परन्तु मैं इन स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग दूंगी जो मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएँगी।” जब इन स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीरकर उस रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया। जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया तथा वह पतिव्रता हो गई।
इसके बाद पार्वती जी अपने पति भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई। स्नान करने के पश्चात बालू की शिवजी की मूर्ति बनाकर पूजन किया। भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाकर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया “आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा।” भगवान शिव यह वरदान देकर अन्तर्धान हो गए।
इस पूजन क्रिया में पार्वती जी को काफी समय लग गया। पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहाँ पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थीं। शिवजी ने विलम्ब से आने का कारण पूछा तो पार्वती जी बहाना बनाते हुए बोली, “मेरे भाई-भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया। इसी कारण से आने में देर हो गई।”
ऐसा जानकार अन्तर्यामी भगवान शंकर भी दूध-भात खाने के लालच में नदी तट की ओर चल दिए। पार्वती जी ने मौन भाव से भगवान शिवजी का ही ध्यान करके प्रार्थना की, “भगवान आप अपनी इस अनन्य दासी की लाज रखिए।”
प्रार्थना करती हुई पार्वती जी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। अचानक उन्हें दूर नदी तट पर माया का महल दिखाई दिया। वहाँ महल के अन्दर शिवजी के साले तथा सहलज ने शिव-पार्वती का स्वागत किया। वे दो दिन वहाँ रहे। तीसरे दिन पार्वती जी ने शिवजी से चलने के लिए कहा तो भगवान शिव चलने को तैयार नहीं हुए। तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दीं। ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारद जी भी साथ चल दिए।
चलते चलते भगवान शंकर बोले, “मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूँ।” माला लाने के लिए पार्वती जी तैयार हुई तो भगवान ने पार्वती जी को न भेजकर नारद जी को भेजा। पर वहां पहुंचने पर नारद जी को कोई महल नजर नहीं आया। वहीं दूर-दूर तक जंगल ही जंगल था। सहसा बिजली कौंधी। नारद जी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टॅगी दिखाई दी। नारद जी ने माला उतारी और शिवजी के पास पहुँच कर यात्रा का सारा कष्ट बताया। शिवजी हँसकर कहने लगे “यह सब पार्वती की ही लीला है।”
इस पर पार्वती जी बोली, “में किस योग्य हूँ। यह सब तो आपकी ही कृपा है।” ऐसा जानकर महर्षि नारद जी ने माता पार्वती तथा उनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
पार्वती जी ने पूजा छुपाकर की थी। इसका कारण है कि पूजा, दान, और सेवा किसी दिखावे से नहीं किये जाते हैं। किसी की तारीफ़ और सहानुभूति पाने के लिए ये कार्य नहीं किये जाते। जहाँ तक उनके द्वारा पूजन की बात को छिपाने का प्रश्न है वह भी उचित ही था क्योंकि पूजा छिपाकर ही करनी चाहिए। चूँकि पार्वती जी ने इस व्रत को छिपाकर किया था, उसी परम्परा के अनुसार आज भी गनगौर व्रत 2018 पूजन के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते।
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