भक्त प्रह्लाद की मान-मर्यादा की रक्षा हेतु वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु नृसिंह के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए यह तिथि एक पर्व के रूप में मनायी जाती है और इसे नृसिंह जयन्ती 2018 कहा जाता है।
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इस व्रत को प्रत्येक नर-नारी कर सकते हैं। व्रती को दोपहरी में वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके स्नान करना चाहिए। नृसिंह भगवान की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराकर मंडप में स्थापित करके विधिपूर्वक पूजन करने का विधान है। ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दक्षिणा, वस्त्र आदि देना चाहिए। सूर्यास्त के समय मन्दिर में जाकर आरती करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इस विधि से व्रत करके उसका पारण करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है।
राजा कश्यप के हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्र थे। राजा के मरने के बाद बड़ा पुत्र हिरण्याक्ष राजा बना, परन्तु हिरण्याक्ष बड़ा क्रूर राजा निकला। वाराह भगवान ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इसी का बदला लेने के लिए उसके भाई हिरण्यकशिपु ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। तप-सिद्धि होने पर उसने भगवान शिव से अमरता का वर माँगा परन्तु भगवान शिव ने अमरता प्रदान करने से इंकार किया तो उसने युक्ति से दूसरा वर माँगा-
मैं न अंदर मरूँ ,न बाहर।
न दिन में मरूँ, न रात में।
न भूमि पर, न आकाश में, न जल में मरूँ।
न अस्त्र से मरूँ ,न शस्त्र से।
न मनुष्य के हाथों मरूँ, न पशु द्वारा मरूँ।
भगवान शिव तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गए। यह वरदान पाकर वह अपने को अजर अमर समझने लगा। उसने अपने को ही भगवान घोषित कर दिया।
उसके अत्याचार इतने बढ़ गए कि चारों ओर त्राहिमाम-त्राहिमाम मच गया। इसी समय उसके यहाँ एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद के बड़ा होने पर एक ऐसी घटना घटी कि प्रह्लाद ने अपने पिता को भगवान मानने से इंकार कर दिया। घटना यह थी कि कुम्हार के आवे में एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे। आवे में आग लगाने पर भी बिल्ली के बच्चे जीवित निकल आए। प्रह्लाद के मन में भगवान के प्रति निष्ठा बढ़ गई।
हिरण्यकशिपु ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि मैं ही भगवान हूँ। परन्तु वह इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ। हिरण्यकशिपु ने उसे मारने के लिए कई उपाय किए। एक दिन उसे एक खम्भे से बाँध दिया और तलवार से वार किया। खम्भा फाड़कर भयंकर शब्द करते हुए भगवान नृसिंह प्रकट हुए। भगवान का आधा शरीर पुरुष का तथा आधा शरीर सिंह का था। उन्होंने हिरण्यकशिपु को उठाकर अपने घुटनों पर रखा और दहलीज पर ले जाकर गोधूली बेला में अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला। ऐसे विचित्र भगवान का लोग मंगल के लिए स्मरण करके ही इस दिन व्रत करने का माहात्म्य है। चूँकि भगवान विष्णु ने आज ही के दिन नृसिंह का अवतार लिया था इसलिए इसे नृसिंह जयन्ती 2018 कहा जाता है।
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