पंचदेव कौन हैं? पंचनदी कौनसी हैं? सप्तर्षि कौन हैं? ये सब हम शास्त्रों और धार्मिक कहानियों में सुनते हैं लेकिन इनके विषय में पता नहीं होता। इस लेख से ऐसे कुछ पूजा के महत्वपूर्ण शब्द जानें। इनके विषय में जानकारी हमें हिन्दू धर्म की कुछ जटिल बातें समझने में उपयोगी होती हैं।
सूर्य, गणेश, शक्ति, शिव और विष्णु। ये आराध्य पंचदेव हैं, इनकी गणना विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और शक्ति, इस क्रम से भी की जाती है।
गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पण करने से पंचोपचार पूजा होती है।
प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और सायंकाल हैं।
ऋक्, यजुः, साम और अथर्व, ये चार वेद हैं।
कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, शिक्षा और ज्योतिष ये छः शास्त्र वेद के अंग हैं।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं।
भागीरथी, यमुना, सरस्वती, गोदावरी और नर्मदा पांच मुख्य नदियां हैं।
पीपल, गूलर, अशोक (आशोपालो), आम और वट इन वृक्षों के पत्ते पंचपल्लव हैं।
चमेली, आम, शमी (खेजड़ा), पद्म (कमल) और कनेर (करवीर) ये पंचपुष्प हैं।
चूर्ण किया हुआ, घिसा हुआ, दाह से खींचा हुआ, रथ से मथा हुआ और प्राणी के अंग से उत्पन्न हुआ (कस्तूरी) ये पांच गंध हैं।
तांबे के वर्ण जैसा गौ का मूत्र ‘गायत्री’ से आठ भाग, लाल गाय का गोबर ‘गंध द्वारा’ से सोलह भाग, सफेद गाय का दूध ‘आप्यायस्व’ से बारह भाग, काली गाय का दही ‘दधि क्राण’ से दस भाग, नीली गाय का घी ‘तेजोऽसि शुक्र’ से आठ भाग लेकर मिलाने और फिर उन्हें छान लेने से पंचगव्य तैयार होता है। इस प्रकार से तैयार किए हुए पंचगव्य को ‘यत त्वगस्थिगतं पापं’ से तीन बार पीएं तो देह के सम्पूर्ण पाप, ताप, रोग और वैर भाव नष्ट हो जाते हैं।
गाय का दूध, दही व घी में चीनी और शहद मिलाकर छानने से पंचामृत बनता है तथा यथाविधि इसका उपयोग करने से शांति मिलती है।
सोना, हीरा, नीलमणि, पद्मराग और मोती ये पांच रत्न हैं।
षट्कर्म का अर्थ है—छ: कर्म, जो नित्य करने चाहिए। ये हैं – स्नान, संध्या तप, होम, पठन-पाठन, देवार्चन और अतिथि सत्कार।
छः अंग–हृदय, मस्तक, शिखा, दोनों नेत्र, दोनों भुजा और कर।
कश्यप, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, जमदग्नि, वशिष्ठ और विश्वामित्र ये सात ऋषि हैं।
पिता, माता, पत्नी, बहन, पुत्री, बुआ और मौसी ये सात गोत्र हैं।
जौ, गेहूं, धान, तिल, कांगनी, श्यामाक (सावां) और देवधान्य ये सात धन्य हैं।
सोना, चांदी, तांबा, आरकूट, लोहा, रांगा और सीसा ये सप्तधातु हैं।
मणिक, मोती, मूंगा, सुवर्ण, पुखराज, हीरा, इन्द्रनील, गोमेद और वैदूर्यमणि ये नवरत्न हैं। इनके धारण करने या दान करने से सूर्यादि की प्रसन्नता बढ़ती है।
अभिवादन के समय जो मनुष्य दूर हो, जल में हो, दौड़ रहा हो, धन से गर्वित हो, स्नान करता हो, मूढ़ हो या अपवित्र हो तो ऐसी अवस्था में उसे नमस्कार नहीं करना चाहिए।
सन्दर्भ:
The Vedas – With Illustrative Extracts
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