महर्षि वाल्मीकि की कथा ये दर्शाती है कि मनुष्य जैसा दिखता है ज़रूरी नहीं कि उसका चरित्र वैसा हो। एक खूंखार डाकू होते हुए भी, जैसे ही अपने कर्मों की सत्यता का आभास हुआ वो इस संसार के महान तपस्वी बन बैठे। जानें महर्षि वाल्मीकि कि कहानी।
रत्ना नाम का एक भयंकर डाकू था। जैसे ही जंगलों में कोई जाता, रत्ना उसे मार कर उसका धन लूट लेता था। उसके इस कार्य से उसके माँ-बाप और पत्नी बहुत खुश होते थे कि रत्ना रोज़ बहुत धन लाता है। वो हमेशा उसे उत्साहित करते रहते थे कि जा लोगों को लूट ला।
एक दिन नारद जी ने ब्रह्मा जी को कहा –
ये कैसा क्रूर मानव है? तीर्थ पर जा रहे यात्रियों की निर्मम हत्या कर देता है और नारायण या आप कुछ नहीं करते?
ये मानव के रूप में अबोध बालक है। इसे कुछ नहीं पता कि ये क्या कर रहा है और इसके अन्दर एक महान आत्मा निवास करती है। तुम्हें जाकर इसके अन्दर की आत्मा को जगाना है।
नारद जी जंगल में पहुंचे। वहां रत्ना ने उन्हें घेर लिया।
सारा माल मुझे दे दे वरना मार डालूँगा।
तुझे अगर सिर्फ माल चाहिए होता है तो लोगों को मार क्यों देता है?
कोई सीधे से माल देता ही नहीं में क्या करूँ।
तू जो करता है उससे पता है तुझे कितना पाप लगेगा?
ये पाप क्या होता है?
जब कोई गलत कार्य करते हैं तो उसका परिणाम पाप होता है और पाप से कष्ट मिलते हैं। तो ये बता कि तुझे पाप लगेगा या नहीं?
बिलकुल लगेगा।
पाप लगेगा तो कष्ट भी होगा
बिलकुल होगा।
जो पाप करके धन अर्जित करते हो वो किसके लिए है?
मेरी पत्नी और माँ-बापू के लिए है।
जब तुम्हारे छीने हुए धन का सभी आनंद ले रहे हैं तो पाप को भी सभी बाटेंगे ही?
बिलकुल बाटेंगे।
जा रत्ना जाकर पूछ कर आ कि पाप के हिस्सेदार बनेंगे या नहीं।
रत्ना वापस गया तो सभी ने पुछा
आज इतनी जल्दी आ गया बता क्या लेकर आया है?
कुछ नहीं।
तो फिर वापस क्यों आ गया? जा जाकर किसी को लूट ले और धन ले कर आ।
जब मेरे छीने हुए धन का सभी आनंद ले रहे हैं तो मेरे पापों को भी सभी मिल बांटकर भोगेंगे। है ना?
सभी चुप हो गए।
हम क्यों तेरे पापों के हिस्सेदार बनेंगे? पाप तू करता है तो तू भोगेगा। हमें धन देकर खुश रखना और जरूरतें पूरी करना तेरा धर्मं है बाकी तू कहीं से भी धन ला उससे हमें क्या।
अगर सिर्फ धन ही चाहिए था तो मुझे आज तक गलत मार्ग के लिए प्रोत्साहित क्यों करते रहे?
क्योंकि इससे खूब सारा धन बड़ी आसानी से आ जाता है।
रत्ना अपने सभी कुकर्मों को सोचता हुआ नारद जी के पास पहुंचा।
मुझे मेरे पापों से मुक्त होना है। मुझे मार्ग बताओ।
किसी एक जगह बैठ जाओ और सिर्फ राम नाम का जाप करो सारे पाप ख़त्म हो जायेंगे।
वो एक जगह बैठ गया और बोलने लगा – मरा मरा मरा मरा मरा राम राम राम राम राम…
जाप करते करते वर्षों बिता दिए। वो जहाँ बैठा था वहां उसके ऊपर दीमक ने वाल्मी बना ली और उसे ढक लिया। कठोर तप से उसके अन्दर की महानता बाहर आ गयी। ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे दिव्य दृष्टि प्रदान की और कहा –
अब तुम्हे एक महानतम कार्य सिद्ध करना है। अपनी दिव्य दृष्टि से तुम राम के जीवन को पहले ही देख लोगे और इसकी मदद से तुम्हे राम के इस महान जीवन को शब्दों में उतार कर राम की जीवनी लिखनी है ताकि युग-युगांतर तक वो लोगों के जीवन को प्रकाशमय करे। चूँकि तपस्या करने पर तुम्हारे ऊपर वाल्मी जम गयी थी इसलिए तुम्हे अब लोग महर्षि वाल्मीकि के नाम से जानेंगे।
जय श्री राम
स्रोत: जानकीप्रसाद द्विवेदी
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