विश्वामित्र एक राजा थे। अपनी सेना के साथ वे कहीं जा रहे थे। रास्ते में वशिष्ठ ऋषि का आश्रम पड़ा। वशिष्ठ सुर्यवंश के कुल गुरु हैं। सुर्यवंश श्री राम (महाबली हनुमान के प्रभु) का वंश है। राजा, वशिष्ठ ऋषि के आश्रम चले गए। ऋषि ने उन्हें भोजन का अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि उनके साथ पूरी सेना है जिसका भोजन का प्रबंध करना नामुमकिन होगा इसलिए वे तकलीफ ना करें। वशिष्ठ जी बोले कि उनके पास दिव्य कामधेनु गाय है जिसके दूध से बने पकवान कभी ख़त्म नहीं होते।
कामधेनु की बात सुनकर विश्वामित्र को भरोसा नहीं हुआ। भला कोई गाय कैसे इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध कर सकती है? परन्तु वशिष्ठ ने उन्हें विश्वास दिलाया कि भोजन का इंतज़ाम हो जायेगा। विश्वामित्र और उनकी सेना भोजन करने बैठ गए।
देखते ही देखते पूरी सेना ने भर पेट भोजन कर लिया। विश्वामित्र ने सोचा कि ऐसी दिव्य गाय तो उनके पास होनी चाहिए। उन्होंने वशिष्ठ जी से अनुरोध किया कि वो गाय उन्हें ले जाने दें पर वशिष्ठ ने मना कर दिया। विश्वामित्र बार बार अनुरोध कर रहे थे परन्तु वशिष्ठ जी कामधेनु को अपने परिवार का सदस्य कह कर मना करते रहे। अपने अहंकार वश विश्वामित्र ने वशिष्ठ ऋषि को कमजोर समझ कर बल का प्रयोग किया जिसे देख ऋषि वशिष्ठ ने अपनी शक्तियों से उनकी सेना का संहार कर दिया।
अपनी सेना का संहार होते देख विश्वामित्र ने अपने पुत्रों को ऋषि पर आक्रमण करने को कहा। वशिष्ठ जी ने उसके एक पुत्र को छोड़ कर बाकी सभी पुत्रों को मार दिया। यह देख कर विश्वामित्र बिलकुल टूट गए। पल भर में उनकी सेना और उनके पुत्रों का विनाश हो गया था। जिसे वो एक मामूली ऋषि समझ रहे थे उन्होंने उनकी सेना और उनके अहंकार का अंत कर दिया।
विश्वामित्र को अत्यंत दुखी देख वशिष्ठ जी ने उन्हें कहा कि वे अपना राज पाट अपने पुत्र को सौंप कर अब भगवान की भक्ति में ध्यान लगायें और लोक कल्याण करें। तपस्या कर विश्वामित्र फिर महान और तेजस्वी ऋषि बने। उन्ही के आश्रम में श्री राम ने ताड़का का वध किया था।
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