किसी भी कार्य को करने की अपनी विधि और नियम होते हैं और अगर वह कार्य नियमों के अनुरूप नहीं किया जाए तो उसकी महत्ता समाप्त हो जाति है। व्रत का सही मतलब समझना उतना ही आवश्यक है जितना व्रत को करना। इस लेख में हम व्रत का सही मतलब और उसके नियम बतायेंगे। इसके अतिरिक्त हम व्रत के परिणाम भी जानेंगे।
जानें पूजा में उपयोग होने वाले कुछ महत्वपूर्ण शब्द जो पता होने ही चाहिए।
व्रत का सही मतलब – व्रत क्या होता है?
- महापुरुषों और आचार्यों के अनुसार किसी विशेष तिथि पर जब पुण्य की प्राप्ति की सोच के साथ उपवास किया जाता है तो वो व्रत कहलाता है।
- समाज और मानवों के हित के लिए किया गया कार्य व्रत होता है।
- श्रीदत्त जी के अनुसार किसी पुण्य कार्य में सम्मलित होना ही अपने आप में व्रत होता है।
- निरुक्त के अनुसार अपने कर्म को निष्ठा और ईमानदारी से करना व्रत होता है।
- व्रत के प्रभाव से मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास किया जाता है।
- देवल के अनुसार –
वेदोक्तेन प्रकारेण कृच्छ्रचान्द्रायणादिभिः ।।
शरीर शोषणं यत्तत्तप इत्युच्यते बुधैः ।।
अर्थात :- वेदों में जिस प्रकार कहा गया है, व्रत और उपवास के नियम-पालन से शरीर को तपाना ही तप है।
व्रत के प्रकार
व्रत और उपवास एक ही होते हैं परन्तु एक अंतर होता है। व्रत में भोजन किया जा सकता है परन्तु उपवास में नहीं। व्रत काफी प्रकार के होते हैं जैसे कायिक, वाचिक, मानसिक, नित्य, नैमित्तिक, काम्य, एकभुक्त, अयाचित, मितभुक्, चान्द्रायण और प्राजापत्य।
व्रत के पुण्य
टोदरानंद के अनुसार –
व्रते च तीर्थेऽध्ययने श्राद्धेऽपि च विशेषतः।
परान्नभोजनाद् देवि यस्यान्नं तस्य तत्फलम्।।
व्रत में, तीर्थ यात्रा में, अध्ययन काल में तथा विशेषकर श्राद्ध में दूसरे का अन्न लेने से, जिसका अन्न होता है, उसी को उस व्रत, तीर्थ या अध्ययन का पुण्य प्राप्त हो जाता है।
व्रत ना कर पाने की स्थति में क्या करें?
मदनरत्न, प्रभासखण्ड के अनुसार –
भर्ता पुत्रः पुरोधाश्च भ्राता पत्नी सखापि च।
यात्रायां धर्मकार्येषु कर्तव्या प्रतिहस्तकाः ।।
अर्थात :- आपत्ति अथवा असामर्थ्य के कारण यदि यात्रा और व्रत आदि स्वयं से न हो सके तो पति, पत्नी, जेष्ठ पुत्र, पुरोहित, भाई या मित्र को प्रतिहस्तक (प्रतिनिधि या एवजी) बनाकर उससे व्रत कराएं। उपर्युक्त प्रतिनिधि प्राप्त न हो तो यह कार्य ब्राह्मण से कराया जा सकता है।
सन्दर्भ: