चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मोदक आदि से गणपति का पूजन किया जाता है जिससे विघ्न-बाधाओं का नाश होता है तथा कामनाओं की पूर्ति होती है। इसे चैत्र गणेश चतुर्थी कहा जाता है।
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चैत्र गणेश चतुर्थी की कथा
प्राचीन काल में मकरध्वज नाम का एक राजा राज करता था। वो अत्यंत न्यायप्रिय और प्रजापालक शाशक था। उसकी राज प्रणाली से सभी संतुष्ट और प्रसन्न रहते थे। याज्ञवल्क्य जी (याज्ञवल्क्य जी के विषय में पढ़ें) की कृपा से उसके घर पुत्र ने जन्म लिया। वो अपने पुत्र से बहुत प्रेम करते थे। राज पाट की वजह से वो अपने पुत्र को समय नहीं दे पा रहा था। इसके चलते उसने अपने मंत्री को ये जिम्मेदारी सौंप दी। उसके मंत्री का नाम धर्मपाल था।
धर्मपाल के पांच पुत्र थे। उसके सभी पुत्रों का विवाह हो गया था। छोटे पुत्र की पत्नि अत्यंत पूजा पाठ में लीन रहने वाली थी। वो श्री गणेश की भक्त थी और अपना अधिकांश समय श्री गणेश की पूजा में व्यतीत करती थी। उसकी सास को गणेश जी के विषय में कुछ नहीं पता था। उसे लगता था कि उसकी पुत्रवधु किसी प्रकार का जादू-टोटका करती है। चूँकि राजा की प्रजा में सभी लोग प्रसन्न और संतुष्ट थे इसलिए इसकी सास ईश्वर भक्ति से दूर हो गयी थी। अक्सर ऐसा होता है कि जो लोग संपन्न हो जाते हैं वो ईश्वर को भूलने लगते हैं। याद तो ईश्वर मुसीबत में ही आते हैं।
सास ने ये बात अपने पुत्र को बताई और कहा की अपनी पत्नि की इस पूजा पाठ को बंद कराओ। हमें ये सब पसंद नहीं। पुत्र ने अपनी पत्नि को समझाया, डराया और मारा पीटा भी परन्तु वो भक्ति करती रही। उसने गणेश जी से प्रार्थना की कि उसके पति और सास-ससुर को अपनी भक्ति का वरदान दें।
गणेश जी विघ्न हर्ता हैं। परन्तु सबक सिखाने का उनका अलग ही अंदाज है। उन्होंने राजा के पुत्र को धर्मपाल के घर में छुपा दिया। जब राजा को अपना पुत्र नहीं मिला तो वो क्रोधित हो गया। उसने अपने मंत्री को चेतावनी दी कि अगर उसका पुत्र नहीं मिला तो वो उसके पूरे परिवार को मृत्यु दंड देगा। धर्मपाल और उसके परिवार पर मुसीबत आ गयी। बचने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था। तभी छोटे पुत्र की पत्नि ने सभी को समझाया कि ये गणेश भगवान का क्रोध है। आप सभी उनसे क्षमा मांगें और उनका व्रत करें। धर्मपाल ने राजा को ये बात बताई तो राजा ने घोसणा की कि सभी लोग गणेश जी का व्रत करेंगे। प्रजा में सभी ने व्रत किया और गणेश जी की कृपा से राजा का पुत्र वापस आ गया।
जिस दिन ये व्रत किया गया वो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसे चैत्र गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इसे गणेश दमनक चतुर्थी भी कहा जाता है।