सावन के सोमवार - मंगला गौरी

सावन के सोमवार 2018 | मंगला गौरी पूजन व्रत विधि और कहानी

सावन के सोमवार 2018 (शिव व्रत)

यह व्रत श्रावण (सावन) मास के सभी सोमवारों को किया जाता है। सावन के सोमवार में शिवजी के व्रतों और पूजा का विशेष महत्त्व है। यह व्रत बडे ही शुभकारी और फलदायी होते हैं। व्रत करने वाले सभी भक्तों पर भगवान शिव अपनी विशेष अनुकम्पा रखते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को गणेशजी, शिवजी, पार्वतीजी तथा नन्दीजी की पूजा की जाती है। इस वर्ष सावन के सोमवार 30 जुलाई 2018, 06 अगस्त 2018, 13 अगस्त 2018, 20 अगस्त 2018 को पड़ने वाले हैं।

Tithiwise Hindu Panchang 2018 - List of festivalsश्रावण मास का तिथि अनुरूप सम्पूर्ण पंचांग देखें।

सावन के सोमवार 2018 व्रत विधि

जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, जनेऊ, चन्दन, रोली, बेलपत्र, भांग-धतूरा, धूप, दीप और दक्षिणा से भगवान पशुपति का पूजन करना चाहिए। कपूर से आरती करके रात्रि में जागरण भी करें। इस दिन सोलह सोमवार व्रत कथा का माहात्म्य सुनना चाहिए।

मंगला गौरी पूजन 2018

मंगला गौरी पूजन एवं व्रत सावन के सभी मंगलवारों को किया जाता है। इस दिन गौरीजी की पूजा करनी चाहिए। चूँकि यह व्रत मंगलवार को किए जाते हैं इसलिए इन्हें मंगला गौरी व्रत भी कहा जाता है। ये व्रत विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए हैं। इस वर्ष मंगला गौरी व्रत 31 जुलाई 2018, 07 अगस्त 2018, 14 अगस्त 2018, 21 अगस्त 2018 को पड़ने वाले हैं।

करवीर व्रतपार्वती पूजा, शिव पूजा और उमा ब्राह्मणी व्रत के विषय में पढ़ें।

मंगला गौरी व्रत विधि 2018

  1. इस दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, तत्पश्चात एक पट्टे या चौकी पर लाल और सफेद कपड़ा रख लें।
  2. सफेद कपड़े पर नौ ढेरी चावल की और लाल कपड़े पर सोलह ढेरी गेहूं की बना लें।
  3. उसी पट्टे पर थोडे-से चावल रखकर गणेशजी को रख दें।
  4. पट्टे के एक अन्य कोने पर गेहूं की एक छोटी-सी ढेरी बनाकर उस पर जल से भरा कलश रखें।
  5. कलश में आम की एक पतली-सी शाखा डाल दें।
  6. इसके बाद आटे का एक चौमुखा दीपक व सोलह धूपबत्ती जलाएं, फिर पूजा करने का संकल्प लें।
  7. सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। उन पर पंचामृत, जनेऊ, चन्दन, रोली, सिंदूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, प्रसाद, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाएं तथा उनकी आरती उतारें, फिर कलश की पूजा करें।
  8. एक सरवा (सकोरा) में गेहूं का आटा रखकर उस पर सुपारी और जो दक्षिणा रखें, उसे आटे में दबा दें, फिर बेलपत्र चढ़ाएं तथा जिस प्रकार गणेशजी की पूजा की थी, उसी प्रकार कलश की भी पूजा करें।
  9. कलश पर सिंदूर व बेलपत्र न चढ़ाएं।
  10. इसके बाद चावल की जो नौ ढेरियां बनाई थीं, उनकी कलश की तरह ही पूजा करें। इनको ‘नवग्रह‘ कहते हैं।
  11. इसके बाद सोलह जगह जो गेहूं रखे थे, उनकी पूजा करें। इनको ‘षोड्श मातृका‘ कहते हैं। इन पर खाली जनेऊ न चढ़ाएं। हल्दी, मेहंदी तथा सिंदूर चढ़ाएं। इन सबकी पूजा कलश और गणेशजी के अनुसार ही होती है।
  12. इसके बाद पंडितजी के हाथ पर कलावा बांध दें, फिर पंडितजी से अपने हाथ में भी कलावा बंधवा लें।
  13. तदन्तर मंगला गौरी का पूजन करें।

गनगौर व्रतपार्वती माता के गणगौर व्रत के विषय में पढ़ें।

मंगला गौरी पूजन विधि 2018

  1. मंगला गौरी के पूजन के लिए एक थाली में चकला रख लें ।
  2. खस पर गंगा की मिट्टी से गौरीजी की मूर्ति काढ़ लें या मूर्ति बना लें।
  3. आटे की एक लोई बनाकर रख लें।
  4. पहले मंगला गौरी की मूर्ति को जल, दूध, दही, घी, चीनी, शहद आदि का पंचामृत बनाकर स्नान कराएं।
  5. स्नान कराकर कपड़े पहनाएं और नथ पहनाकर रोली, चन्दन, सिंदूर, हल्दी, चावल, मेहंदी, काजल लगाकर 16 तरह के फूल चढ़ाएं।
  6. 16 माला, 16 तरह के पत्ते चढ़ाएं।
  7. आटे के 16 लड्डू, 16 फल व 5 तरह के मेवा 16 बार चढाएं।
  8. 16 बार 7 तरह का अनाज, 16 जीरा, 16 धनिया, 16 पान, 16 सुपारी, 16 लौंग, 16 इलायची, एक सुहाग की डिब्बी, एक डिब्बी में तेल, रोली, मेहंदी, काजल, हिंगुल सिंदूर, कंघा, शीशा, 16 चूड़ी व दक्षिणा चढ़ाएं। उसके पश्चात् गौरीजी की कथा सुनें।

 

मंगला गौरी 2018 व्रत कहानी

प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे बसी विमलापुरी के राजा चन्द्रप्रभ ने अप्सराओं के आदेशानुसार अपनी छोटी रानी विशालाक्षी से यह व्रत करवाया था, किंतु मदान्विता महादेवी (बड़ी रानी) ने व्रत का डोरा तोड़ डाला और पूजन की निंदा की, परिणामस्वरूप वह विक्षिप्त हो गई और आम्र, सरोवर एवं ऋषिगणों से ‘गौरी कहां-गौरी कहां‘ पूछने लगी। अंत में गौरीजी की कृपा होने पर ही वह पूर्व अवस्था को प्राप्त हुई और फिर व्रत करके सुखपूर्वक रहने लगी।

यह कथा सुनने के बाद चौमुखा दीपक बनाकर उसमें 16 तार की बत्ती बनाएं, फिर कपूर से आरती उतारें और परिक्रमा करें। सासूजी के पांव छूकर 16 लड्डुओं का बायना दें। इसके बाद भोजन करें। इसमें एक ही अनाज अन्न के रूप में ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत में नमक खाना वर्जित है। दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में गौरीजी का विसर्जन करना चाहिए। उसके बाद ही भोजन करें।

स्रोत्र:

Devi: Goddesses of India by John Stratton Hawley, Donna M. Wulff

Shiva: The Light of Lights by Makarand Dave

Leave a Reply