दशानन की शिक्षा और कुम्भकरण, विभीषण और सूर्पनखा का जन्म
विश्र्व ऋषि के आश्रम में दशानन वेद और पुराणों कि शिक्षा ले कर ज्ञान हांसिल करने लगा। फिर वो ब्रह्मा जी कि तपस्या करने जंगल में चला गया। केकसी ने तीन और संतानों को जन्म दिया – कुम्भकरण, विभीषण और सूर्पनखा।
दशानन की तपस्या भंग
जब दशानन तपस्या कर रहा था तब इंद्र ने अग्नि देव को भेज कर उसकी तपस्या भंग कर दी। गुस्से में दशानन आश्रम चला गया। केकसी ने उसे फिर से प्रेरित किया और इस बार उसके साथ उसके भाई – बहन भी गए।
राजा मनु का राज्य त्याग
नारद मुनि राजा मनु से मिलने गए और उन्हें कहा कि अब उन्हें राजपाट त्याग कर भगवान विष्णु की तपस्या करनी चाहए। मनु जी ने वैसा ही किया और जंगल जाकर नारायण कि तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न हो कर नारायण ने उन्हें और उनकी पत्नी शतरूपा को वरदान दिया कि अगले जन्म में वे स्वयं उनके घर जन्म लेंगे।
केसरी और पुन्जिक्स्थला का पुनर्जन्म और दैत्य शम्भ्सादन का अंत
केसरी ने अपने शरीर का त्याग किया और सुमेरु पर्वत पर राजा वासुकी के राज्य में जन्म लिया। दूसरी ओर पुन्जिक्स्थला ने राजा कुंजर के घर जन्म लिया। इस जन्म में उनका नाम अंजना था। शम्भ्सादन नाम के राक्षस ने अंजना का अपहरण करने का प्रयास किया परन्तु केसरी ने उसका वध कर दिया। अंजना ने केसरी को पति रूप में स्वीकार किया।
अंजना के विवाह से पवन देव दुखी हो गए। उन्होंने शिव जी से पुछा कि ऐसा क्यों हुआ? शिव जी ने कहा कि तपस्या से पुन्जिक्स्थला का स्वर्ग के प्रति मोह ख़त्म हो गया है और उसकी पुरानी स्मृतियाँ भी समाप्त हो गयीं हैं। पवन देव उस दुःख को सह सकें इसीलिए शिव जी ने उन्हें कैलाश पर शरण दी थी और इंद्र ने स्वर्ग से निकाला था। शिव जी ने पवन देव को कहा कि लोक कल्याण के लिए उन्हें पुन्जिक्स्थला को भूलना होगा।
अंजना कि पुनः तपस्या
नारद जी अंजना से मिलते हैं और उन्हें बताते हैं कि वो राजमहल छोड़ कर वन में जाकर शिव जी कि तपस्या करें। भले जी उन्होंने पिछले जन्म में वरदान पाया था परन्तु उन्हें पुनः तपस्या करनी थी। अंजना कि तपस्या से शिव जी प्रसन्न हो गए परन्तु वरदान वो पहले ही दे चुके थे इसलिए उन्होंने पवन देव के माध्यम से नाग ऋषि के आश्रम से शक्ति पुंज अंजना के गर्भ में धारण करवा दिया। इस तरह पवन देव मारुती के पालक पिता कहलाये और उनका विरह का कष्ट भी समाप्त हो गया। उनका प्रेम अब मारुती के लिए समर्पित हो गया।
दशानन की घोर तपस्या
दशानन और उसके भाई घोर तपस्या कर रहे थे परन्तु ब्रह्मा जी प्रसन्न नहीं हो रहे थे। क्रोध में दशानन ने अपना शीश अपने ही खडग से काट दिया। शीश काटने पर भी वो मरा नहीं अपितु एक नया शीश आ गया। दशानन अपनी तपस्या करता ही रहा।
मारुती का जन्म और हनुमान बनने की कथा
अंजना ने एक अति शक्तिशाली वानर पुत्र को जन्म दिया। बचपन से ही मारुती बहुत शरारती थे और उनके ह्रदय से हमेशा राम का नाम निकलता था।
एक दिन सूर्य को देख कर उन्हें लगा कि ये कोई चमकदार मीठा फल है। वो पवन के वेग से सीधे सूर्य तक पहुँच गए और उसे अपने मुंह में रख लिया। सारा संसार अन्धकार में डूब गया। इंद्र देव दौड़ते हुए अपने एरावत पर मारुती के पास पहुंचे और उन्हें धमकाया कि वो सूर्यदेव को छोड़ दें। मारुती ने उनके एरावत को खिलोने की तरह पकड़ कर फेंक दिया। क्रोधित होकर इंद्र ने मारुती की थोड़ी पर वज्र से प्रहार किया और मारुती बेसुध हो कर धरती पर गिर गए।
ये सब देख कर पवन देव क्रोध में जलने लगे। उन्होंने मारुती को एक गुफा में लेटाया और दुनिया से प्राण वायु खींचना आरम्भ किया। संसार में त्राहि त्राहि मच गयी। तड़प तड़प कर जीव मरने लगे। यह देख इंद्र देव ने क्षमा मांगी परन्तु पवन देव नहीं माने। तब ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर मारुती को सचेत किया। सभी देवताओं ने मारुती को आशीर्वाद दिया जैसे –
- ब्रह्मा जी ने सर्वशक्तिमान और हर प्रकार के अस्त्र-शस्त्र से सुरक्षित रहने का वरदान दिया।
- इन्द्र ने मारुती को वज्र का प्रहार सहने की शक्ति दी।
- सूर्य देव ने स्वयं का सौवां अंश प्रदान किया जिससे उनमें ज्ञान, ज्योतिष, संगीत की प्रवीणता आई और उन्हें वचन दिया की उनकी शिक्षा वे स्वयं लेंगे।
- यमराज ने उन्हें अपना यमदंड दिया जिससे वो हर प्रकार के रोगों से मुक्त रहेंगे और मृत्यु भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी।
- वरुण देव ने उन्हें सदा वरुण पाश से मुक्त रहने का वरदान दिया।
- विश्वकर्मा ने उन्हें तीर दिए जिससे विश्वकर्मा के बनाये अस्त्र-शस्त्र का उन पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
- अंत में कुबेर ने उन्हें गदा प्रदान की।
हनु पर वज्र का प्रहार होने के कारण मारुती हनुमान के नाम से प्रसिद्द हुए।
No Responses