श्रवण कुमार कि मृत्यु और दशरथ को श्राप
श्रवण कुमार अपने बूढ़े सूर माँ-बाप को अपने कन्धों पर उठाकर काशी के दर्शन कराने ले जा रहे थे। सरियु नदी के तट पर उन्हें प्यास लगी तो श्रवण कुमार अपने माता-पिता के लिए जल लेने चले गए। वहीँ राजा दशरथ शिकार के लिए निकले हुए थे। उन्हें दूर से कुछ चमकता हुआ दिखा तो उन्होंने सोचा कि ये कोई जंगली हाथी कि आँख है। उनके मंत्री ने उनसे कहा कि हाथी का शिकार ना करें क्योंकि हाथी का शिकार शास्त्रों के खिलाफ है परन्तु वे नहीं माने और तीर छोड़ दिया। वो तीर श्रवण कुमार को लगा और उसने दशरथ से कहा कि वो जाकर उसके माता-पिता को पानी पिला दे।
जब दशरथ जी पानी पिलाने गए तो श्रवण कुमार के माता-पिता ने उन्हें श्राप दिया कि जिस तरह वो आज अपने पुत्र के वियोग में तड़प रहे हैं उसी प्रकार दशरथ भी अपने पुत्र के वियोग में तड़पेंगे। इतना कह कर दोनों ने प्राण त्याग दिए।
तीन निर्दोषों की चिता को अग्नि देते समय दशरथ को बहुत कष्ट हो रहा था। वो सोच रहे थे कि ये कैसा अनर्थ हो गया। अभी तो पुत्रों का मुख तक नहीं देखा और उनके वियोग का श्राप मिल गया।
दशरथ जी का पुत्रेष्ठी यज्ञ
इक्ष्वाकु और सूर्य वंश के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ ने दशरथ जी को पुत्रेष्ठी (पुत्रकामना) यज्ञ करने कि सलाह दी। इस यज्ञ के प्रभाव से उन्हें पुत्र धन की प्राप्ति होती। पुत्रेष्ठी यज्ञ किया गया और अग्नि देव एक कटोरे में खीर लेकर प्रकट हुए। दशरथ जी कि तीनों रानियाँ – कौशल्या, कैकई और सुमित्रा ने खीर का प्रसाद ग्रहण किया।
दशानन को वरदान
दशानन सर काटते-काटते जैसे ही दसवीं बार सर काटता है तभी ब्रह्म देव प्रकट हो जाते हैं। वो दशानन को उसके दासों सर वापस दे देते हैं और वरदान देते हैं कि किसी भी दैत्य, देवता, गन्धर्व, यक्ष के हाथों उसकी मृत्यु नहीं होगी। अपने अहंकार के चलते मनुष्यों को तुच्छ समझ कर उन्हें वरदान में शामिल नहीं किया। इसके साथ ही ब्रह्मा जी ने उसके नाभि में अमृत कुंड दिया। विभीषण को सदा सत्य और न्याय के पक्ष में रहने का और ब्रह्मास्त्र का वरदान दिया। कुम्भकरण को शांति कि निद्रा का वरदान दिया परन्तु यदि कोई उसे बीच निद्रा से जगायेगा तो उन्ही दिनों में उसकी मृत्यु हो जाएगी।
दशानन का लंका पर अधिकार
वरदान पाने के बाद सर्वप्रथम दशानन ने अपने नाना सोमाली के साथ लंका पर आक्रमण किया। कुबेर ने बिना युद्ध किये लंका को अपने छोटे भाई दशानन को सौंप दिया।
अलकापुरी की स्थापना
शिव जी की आज्ञा से कुबेर ने कैलाश के पास यक्षों के लिए अलकापुरी कि स्थापना की और यक्षों की शक्ति को बढाया।
श्री राम का जन्म
कौशल्या माता ने अयोध्या में श्री राम को जन्म दिया। कैकई माता ने भारत को और सुमित्रा माता ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को।
मिथिला में सीता माता का प्रकट होना
मिथिला नगरी में सूखा पड़ा हुआ था। ये देख महाराज जनक ने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। यज्ञ के प्रभाव से मिथिला में बारिश होने लगी। महाराज जनक ने स्वयं खेत में हल चलाकर अपने हर्ष को व्यक्त किया। तभी उन्हें धरती से एक बच्ची मिली। ये माता लक्ष्मी का अवतार थीं और सीता कहलायीं।
हनुमान जी और श्री राम का प्रथम मिलन
हनुमान जी ने शिव जी से प्रार्थना की कि वे उन्हें श्री राम से मिलाएं। शिव जी ने मदारी का रूप लिया और हनुमान जी को अपना बन्दर बनाया। फिर अयोध्या के महल में जाकर गीत-संगीत के साथ मदारी का खेल दिखाया जहाँ सर्वप्रथम श्री राम और हनुमान जी का मिलन हुआ।
दशानन का किशकिन्दा पर आक्रमण
किशकिन्दा वानर राज बाली की नगरी थी। बाली को वरदान था कि उसके सामने जाते ही शत्रु का आधा बल समाप्त हो जाएगा। दशानन अपने बल के अभिमान में बाली से युद्ध करने चला गया। बाली के सामने जाते ही उसका आधा बल समाप्त हो गया और बाली ने उसे अपनी कांख में दबा लिया। दशानन ने माफ़ी मांगी और फिर कभी किसी वानर शाशित राज्य में आक्रमण ना करने का वचन दिया।
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