राम नवमी का त्यौहार श्रीराम के जन्म से सम्बन्धित है । चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति में यह दिन पुण्य पर्व माना जाता है और इस नवमी को राम नवमी कहा जाता है।
राम नवमी व्रत की विधि
इस दिन पुण्य सलिला सरयू नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। नवमी को रात्रि को रामचरित मानस का पाठ करना तथा सुनना चाहिए। अगले दिन भगवान राम का विधि पूर्वक पूजन करना चाहिए तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान देकर प्रसन्न करना चाहिए।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र के आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए। भगवान राम की गुरु सेवा, जाति-पाति का भेदभाव मिटाना, शरणागत की रक्षा, भ्रातृ-प्रेम, मातृ प्रेम भक्ति, एक पत्नी व्रत, पवनसुत हनुमान तथा अंगद की स्वामी भक्ति, गिद्धराज की कर्तव्यनिष्ठा तथा केवट आदि के चरित्रों की महानता का गुणगान करना चाहिए।
राम नवमी की कथा
अयोध्या के राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के उद्देश्य से पुत्रकामना यज्ञ किया। यज्ञ के अंत में उन्हें खीर प्रदान की गयी जो उन्हें अपनी रानियों को खिलानी थी। ये खीर यज्ञ का फल थी जिसमें अद्वितीय संतानों के जन्म की शक्ति थी। राजा दशरथ खीर ले कर अपने महल की और चल दिए।
मार्ग में एक चील उनके हाथों से थोड़ी सी खीर अपनी चोंच में ले कर उड़ गयी। परन्तु राजा दशरथ अपने महल की तरफ ही बढ़ते रहे।
महाराज दशरथ के तीन रानियां थीं – कौशल्या, कैकई और सुमित्रा। महाराज ने खीर तीनों रानियों को खिला दी। महारानी कैकई ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को जन्म दिया, कैकई ने भरत को और सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को।
जो चील खीर ले कर उड़ गयी थी उसने वो माता अंजनी के हाथों में गिरा दी। माता अंजनी ने उसे ग्रहण किया और महाबली रामभक्त हनुमान को जन्म दिया।