विभीषण का त्याग
बार बार रावण के कार्यों में रोक-टोक और शत्रु की प्रशंसा सुन सुन कर रावण परेशान हो गया और उसने विभीषण को अपने राज्य से धक्के मारकर बाहर फेंक दिया। विभीषण श्री राम की शरण में गया जहाँ राम ने उसे लंका का राजा घोषित किया।
सेतु का निर्माण
सागर पार करने के लिए श्री राम ने समुद्र देव से प्रार्थना की। कठोर प्रार्थना करने पर भी जब समुद्र देव प्रकट नहीं हुए तो वानर सेना क्रोधित हो गयी। उन्होंने श्री राम से कहा कि अब वो और प्रतीक्षा ना करें और इस सागर को ही अपने वाणों से समाप्त कर दें। जब कोई मार्ग नहीं बचा तो श्री राम ने अपने धनुष पर वाण चढ़ाया और संधान करने ही वाले थे कि समुद्र देव बाहर आये और उन्होंने बताया कि देवताओं के आदेश के कारण वो बाहर नहीं आये थे। श्री राम को सागर पार करने के लिए सेतु का निर्माण करना होगा। धनुष पर चढ़ाया वाण कभी वापस नही रखा जाता इसलिए श्री राम ने उसे द्रम्कुल्य पर्वत पर संधान किया जहाँ असुरों का उत्पात था।
श्री राम की सेना में नल-नील थे जो देव शिल्पी विश्वकर्मा के पुत्र थे। उन्होंने सेतु का निर्माण अपने हाथों से किया। उन्होंने बताया कि अगर राम नाम के पत्थर समुद्र में डाले जाएँ तो वो तैरने लगेंगे। सभी वानर सैनिक मिल कर सेतु का निर्माण करने लगे।
श्री राम ने भी एक पत्थर समुद्र में फैंका परन्तु वो डूब गया। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ पर जामवंत जी बोले कि जब किसी को श्री राम ने ही छोड़ दिया तो वो तो डूब ही जायेगा ना, इसमें आश्चर्य की तो कोई बात ही नहीं है।
श्री राम ने देखा कि एक गिलहरी सागर में डुबकी लगा कर रेत में लोटती है और फिर सागर में डुबकी लगाती है। वो रेत से सागर को भरने का प्रयास कर रही थी। यह देख श्री राम बहुत प्रसन्न हुए और उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो श्री राम की उँगलियों के निशान उसकी पीठ पर बन गए।
सेतु से होकर सभी वानर लंका पहुँच गए।
रावण की राजनीति
रावण बहुत शक्तिशाली और कुशल राजा था। राजनीति में भी उसका कोई मुकाबला नहीं था। जब राम की सेना लंका पहुँच गयी तब उसकी तरफ से कोई गतिविधि नहीं हुई। श्री राम के योद्धा सोच रहे थे कि आखिर रावण कुछ कर क्यों नहीं रहा है? शत्रु उसके द्वार पर हैं पर वो बिलकुल शांत है।
रावण, बुद्धिमानी के साथ, ये सोच रहा था कि शत्रु की कमजोरी क्या है। उसे पता चला कि ये सेना सुग्रीव की है और अगर सुग्रीव को राम से अलग कर दिया जाए तो ये युद्ध समाप्त हो जायेगा। उसने शुक और सारन नाम के दो गुप्तचर, वानरों के वेश में, श्री राम की सेना में शामिल कर दिए। उन्होंने सुग्रीव को कहा कि लंकेश सुग्रीव को लंका का आधा राज्य दे देंगे अगर वो इस युद्ध से हट जाएँ तो। सुग्रीव ने उनका असली रूप सामने लाने के लिए प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और सभी के सामने उनको खड़ा कर दिया। श्री राम ने उन्हें छोड़ दिया क्योंकि रघुकुल की नीति के अनुसार किसी संदेशवाहक का अहित नहीं किया जाता।
फिर रावण ने सीता जी के साथ छल किया। उन्हें अपनी माया से श्री राम का कटा सर दिखाया जो उसके खुद के सर में परिवर्तित हो गया।
अंगद की चेतावनी
रावण को आखरी चेतावनी देने के लिए श्री राम किसी को भेजना चाहते थे। श्री राम की सेना में सबसे छोटे बाली पुत्र अंगद थे। सभी योद्धा कुछ ना कुछ कर रहे थे तो अंगद बोले कि सन्देश लेकर वो जाना चाहते हैं। श्री राम ने अनुमति दे दी।
रावण के राज्य में पहुँच कर अंगद ने उसे श्री राम से क्षमा मांग कर सीता माता को सौंपने के लिए कहा तो रावण क्रोधित हो गया। इस पर अंगद बोला कि में श्री राम की सेना का सबसे तुच्छ सैनिक हूँ और मुझमें इतना बल है कि अगर मैंने तेरी लंका में अपना पैर जमा दिया तो भूकंप आ जायेगा। तू युद्ध तो बाद में करना पहले अगर तेरे योद्धाओं में बल है तो मेरे पैर को ही हटा कर देख ले। अगर मेरा पैर हिला भी दिया तो सौगंध श्री राम की, ये युद्ध यहीं समाप्त हो जायेगा। रावण के सभी वीर योद्धा अंगद का पैर हटाने के लिए संघर्ष करने लगे परन्तु कोई सफल नहीं हुआ। अंत में रावण आया तो अंगद ने पैर हटा कर कहा कि अगर पैर पकड़ने हैं तो श्री राम के पकड़, तेरा कल्याण हो जायेगा। इतना कह कर अंगद वापस शिविर में आ गए।
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