मेघनाद के नागपाश का वार
अंगद की चेतावनी और योद्धाओं का शर्मनाक प्रदर्शन देख कर रावण क्रोध में पागल हो गया। मेघनाद ने श्री राम और लक्ष्मण पर नागपाश और नागदंश से प्रहार किया। मेघनाद की पत्नी एक नाग कन्या थी इसलिए उसके पास नागों के भयंकर अस्त्र थे।
नागदंश और नागपाश का सम्मान करते हुए श्री राम और शेषनाग अवतार लक्ष्मण उसमें बंध गए और मुर्छित हो गए।
श्री राम की सेना के सभी प्रयास नागपाश को हटाने में विफल हो गए। तभी देवताओं ने नारायण की सवारी गरुड़ का स्मरण किया और गरुण ने नागों का अंत करके श्री राम और लक्ष्मण को आजाद कराया।
ये सब देख कर नाग देवी अपमानित महसूस करने लगीं और शिव के पास पहुँचीं। शिव जी ने उन्हें बताया कि लक्ष्मण जी स्वयं शेषनाग के अवतार हैं और नाग देवी को अपमानित महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुन कर नाग देवी संतुष्ट हुईं।
धूम्राक्ष, वज्रदंश और अकम्पन
जब श्री राम और लक्ष्मण के स्वस्थ होने की खबर लंकेश को पता चली तो उसने दैत्य धूम्राक्ष और वज्रदंश को बुलाया परन्तु वानर सेना ने दोनों को समाप्त कर दिया।
फिर उसने अकम्पन जैसे भयंकर राक्षस को बुलाया जिसे हनुमान जी ने मृत्यु के घाट उतार दिया।
लंका सेनापति प्रहस्थ का वध
नील ने प्रतिज्ञा ली थी कि लंका के सेनापति को वो ही मारेगा और उसने प्रहस्थ का वध करके प्रतिज्ञा पूर्ण की।
कुम्भकरण का वध
जब राक्षस लगातार मात खा रहे थे तो रावण ने कुम्भकरण को जगाने का आदेश दिया। कुम्भकरण बीच नींद से जगा दिया गया। वो रावण की नीतियों से कभी भी खुश नहीं था परन्तु भाई के साथ नहीं छोड़ सकता था इसलिए युद्ध में कूद पड़ा।
अति शक्तिशाली कुम्भकरण ने वानर सेना में हाहाकार मचा दिया। बड़े बड़े योद्धा उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। महाकाय कुम्भकरण ने आतंक मचा दिया। तब श्री राम ने उसका वध किया।
नरान्तक, देवांतक, त्रिशिरा, महापाक का वध
रावण की सहायता के लिए शुक्राचार्य ने नरान्तक, देवांतक, त्रिशिरा, महापक जैसे भयंकर राक्षसों को भेजा जिन्हें नल, नील, अंगद, जामवंत और सुग्रीव ने मृत्यु लोक पहुंचा दिया।
लक्ष्मण का मूर्छित होना
मेघनाद और लक्ष्मण के बीच युद्ध हुआ और मेघनाद ने लक्ष्मण जी पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया। लक्ष्मण जी मुर्छित हो गए। हनमान जी उन्हें उठा कर शिविर में ले आये। श्री राम की सेना में शोक की लहर दौड़ गयी। विभीषण जी ने कहा कि तुरंत सुशेन वैद्य को बुलाया जाए। हनुमान जी सुशेन वैद्य को लेने गए तो उन्होंने आने से मना कर दिया। हनुमान जी उन्हें कुटिया समेत उठा लाये। तब हनुमान जी ने समझाया कि वैद्य का सबसे पहला कर्त्तव्य अपने रोगी का उपचार करना है।
सुशेन वैद्य बोले कि अगर सूर्योदय तक हिमालय के द्रोंगिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लायी जा सके तो उपचार संभव है अन्यथा नहीं। हनुमान जी श्री राम की आज्ञा लेकर हिमालय की ओर उड़ गए।
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