हनुमान जी बने हनुमंतासुर
नारद जी ने हनुमान जी को बताया कि त्रेता युग का आखिरी युद्ध लंका में ही होना है और इस युद्ध में समस्त राक्षसों का वध होना है। हनुमान जी ने पुछा कि समस्त राक्षसों को लंका कैसे पहुंचाया जाए तो नारद जी ने कहा कि अब हनुमान बनेगा हनुमंतासुर।
हनुमान जी ने दैत्य का रूप रखा जिसका नाम था हनुमंतासुर और दैत्यों में जा कर शामिल हो गए। वहां सभी को कहा कि उन्होंने हनुमान को समाप्त कर दिया है और अब लव-कुश अकेले पड़ गए हैं। सबसे पहले विभीषण पर आक्रमण करना चाहिए और पूरी सेना के साथ। राक्षसों ने उनकी बात मान ली और हनुमान जी ने समस्त राक्षसों का लंका नगरी में ही वध कर दिया।
राहू का लव-कुश पर प्रकोप
राहू, सूर्य और सूर्य वंश का परम शत्रु है। मौका मिलते ही राहू, लव और कुश की कुंडली में बैठ गया। उसने शनि देव के माध्यम से हनुमान जी पर सन्देश भिजवाया कि ग्रहों के कार्य में वो बाधक ना बनें। हनुमान जी ने शनि देव को चेतावनी दी कि किसी भी राम भक्त को सताने का प्रयास भी ना करें।
हनुमान जी की चेतावनी और राहू के भड़काने से शनि देव क्रोधित हो गए। लव-कुश के विनाश के लिए वो भी राहू के साथ हो गए। एक साधू का वेश धारण करके वो लव के पास पहुंचे और उसे कहा कि उनके पूर्वज राजा रघु ने एक बहुत विशाल खजाना उश्निश पर्वत की गुफाओं में छिपाया हुआ है जिसे यक्ष सुरक्षित रखे हुए हैं। उन यक्षों की आज्ञा है कि लव वो खजाना ले लें। लव ने पुछा कि राजा रघु के बाद तो काफी राजा हुए हैं फिर उन्हें इस खजाने का पता क्यों नहीं था? तो साधू ने कहा कि ये खजाना उन्ही के भाग्य का है और इसकी खबर किसी को भी नहीं लगनी चाहिए। राहू के प्रभाव से लव के मन में लालच आ गया।
इसी प्रकार शनि देव एक अघोरी का रूप लेकर कुश के पास गए और यही कहानी उसे भी बताई। दोनों लव-कुश गुफा में पहुंचे और शनि देव ने गुफा बंद कर दी। घुटन से दोनों भाई मूर्छित हो गए।
चम्पिता और सुनंदा ने हनुमान जी को सारी बात बताई तो उन्होंने गुफा में जाकर लव-कुश को सुरक्षित किया। फिर हनुमान जी ने राहू को पकड़ा और उसे चेतावनी दी कि कभी किसी राम भक्त को सताने का प्रयास ना करे क्योंकि हनुमान जी सदेव उसके साथ होंगे और राहू को उसका दंड भोगना पड़ेगा। शनि देव ने क्षमा मांगी और बताया कि राहू उनके शीश पर चढ़ गया था इसलिए उनसे ये कृत्य हो गया।
हनुमंतेश्वर महादेव की कथा
कौशलपुर के राजा धर्मं और उनकी पत्नी धर्मांगना को काफी समय पश्चात शिव जी कि कृपा से सुधर्म नाम का पुत्र प्राप्त हुआ था। धर्मं के भाई कन्दर्भ और मंत्री ने मिलकर सुधर्म का अपहरण कर लिया और उसे नदी में डुबो कर मार दिया। नारद जी ने हनुमान जी को ये सब बताया तो हनुमान जी ने सर्वप्रथम सुधर्म को नदी से निकाल कर महादेव की कृपा से जीवित कर दिया।
दोनों अपराधियों को पकड़ कर हनुमान जी ने राजा धर्म के सामने डाल दिया। उन्होंने अपने कर्म के लिए धर्म से माफ़ी मांगी परन्तु राजा ने कहा कि माफ़ी मांगनी है तो हनुमान जी से मांगनी होगी। हनुमान जी ने कहा कि जो पाप किया है वो सुधर्म के साथ किया है तो माफ़ी सुधर्म से मांगनी होगी। सुधर्म ने उन्हें माफ़ कर दिया। चूँकि हनुमान जी ने सुधर्म की रक्षा की थी और महादेव की कृपा से उसका जन्म हुआ था, इसलिए राजा धर्म ने हनुमंतेश्वर महादेव की स्थापना की।
श्री रामनाथपुर की कथा
एक सैनिक घायल अवस्था में एक मंदिर की ओर दौड़ा चला आता है। वो पंडित श्रीधर जी को बताता है कि वो श्री रामनाथपुर का सैनिक है। उनके राज्य पर आक्रमण होने वाला है। उसने दुश्मनों को रोकने का प्रयास किया परन्तु उन्होंने उसे बुरी तरह घायल कर दिया। अपनी आखिरी सांस में वो अपने राजा को सचेत कर अपना कर्त्तव्य पूर्ण करना चाहता है। पंडित श्रीधर ये सन्देश अपने राज्य रामनाथपुर के राजा परितोष तक पहुंचा देते हैं कि उनके शत्रु रिपुदमन ने उन पर आक्रमण कर दिया है।
रिपुदमन, राजा परितोष से प्रतिशोध लेना चाहता था क्योंकि रानी मधुमालिनी ने अपने स्वयंवर में परितोष को चुना रिपुदमन को नहीं। रिपुदमन ने उनके महल को घेर लिया परन्तु परितोष और मधुमालिनी वहां से भागने में सफल रहे। मार्ग में रिपुदमन के सैनिकों ने राजा को घेर लिया परन्तु उनका गुप्तचर, मेघ वहां आ गया और उसने बड़ी ही बहादुरी से उन सभी सैनिकों को मृत्यु के घाट उतार दिया। वो उन्हें ले कर पंडित श्रीधर के मंदिर पहुँच गया और स्वयं पहरा देने लगा।
रिपुदमन को मुर्ख बनाने के लिए मेघ ने स्वयं को पकडवा दिया और अपने प्राण को बचाने के बदले में उन्हें परितोष का पता बताने का वचन दिया। फिर मेघ ने उन्हें गलत दिशा में भेज दिया और परितोष को थोडा और समय मिल गया।
मेघ वापस आकर मंदिर की रक्षा करने लगा। श्री रामनाथपुर में सभी श्री राम और हनुमान जी के भक्त थे। परितोष की पूजा से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उसे थोडा सिन्दूर दिया और कहा कि जब खतरा दिखे तो इसका उपयोग करना।
रिपुदमन ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया। मेघ ने बहुत बहादुरी से उनका सामना किया परन्तु शत्रुओं की बहुत अधिक संख्या होने के कारण वो बुरी तरह घायल हो गया। यह देख परितोष ने सिंदूर अपने माथे पर लगाया और हनुमान जी का नाम लिया। उसी समय एक गदा प्रकट हुई और रिपुदमन कि पूरी सेना को मार कर भगा दिया। अंत में वो रिपुदमन के पीछे पड़ गयी। जान बचा कर रिपुदमन राज्य से भाग गया परन्तु गदा ने पीछा नहीं छोड़ा। फिर वो वापस परितोष के पास आया और गदा से मुक्त करने को कहा। परितोष ने उससे वचन लिया कि वो श्री राम की भक्ति करेगा। गदा वहां से गायब हो गयी।
त्रेता युग समाप्त, द्वापर युग प्रारंभ
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