बाली की सुग्रीव को मारने की चेष्टा
दानव दुन्दुबी कि मृत्यु का बदला लेने के लिए उसका भाई मायाबी सुग्रीव पर हमला कर देता है। सुग्रीव घायल हो जाता है परन्तु उसका भाई बाली उसकी मदद के लिए पहुँच जाता है। मायाबी एक गुफा में भाग जाता है और बाली उसके पीछे पीछे अन्दर चला जाता है। सुग्रीव बाहर खड़े रहकर बाली की प्रतीक्षा करता है। कई दिनों तक युद्ध चलता रहता है और एक दिन सुग्रीव को मायाबी की आवाज आती है परन्तु बाली की नहीं। बाली को मृत समझ कर सुग्रीव गुफा का द्वार एक बड़े पत्थर से बंद कर देता है और किशकिन्दा आकर अपने भाई का राज पाट संभालता है।
बाली उस दैत्य को मार कर गुफा के बाहर आ रहा होता है तो उसे गुफा का द्वार बंद दिखता है। वो पत्थर हटा कर देखता है तो उसे सुग्रीव कहीं नज़र नहीं आता। उसे लगता है कि द्वार सुग्रीव ने ही बंद किया है। वो राजमहल पहुच कर देखता है कि सुग्रीव उसके सिंहासन पर बैठा है। बाली क्रोध में आ जाता है और सोचता है कि सुग्रीव ने ये सब उसका राजपाट हथियाने के लिए किया है। वो सुग्रीव को मारने दौड़ता है परन्तु हनुमान जी उसे मातंग ऋषि के आश्रम में छुपा देते हैं। बाली श्राप के कारण आश्रम में नहीं जा सकता था इसलिए बाहर से ही लौट जाता है। वो सुग्रीव कि पत्नी रुमा को कारवास में डाल देता है।
सीता का स्वयंवर और अहिल्या का उद्धार
राजा जनक सीता माता का स्वयंवर रखते हैं जिसमे बड़े बड़े राजा महाराजा को आमंत्रित किया जाता है। रावण को आमंत्रण नहीं भेजा होता है परन्तु वो फिर भी पहुँच जाता है।
स्वयंवर में जाते समय श्री राम गौतम मुनि के आश्रम में एक शिला पर पैर रख कर अहिल्या को श्राप से मुक्त करते हैं।
स्वयंवर की शर्त थी कि जो कोई शिव धनुष उठा कर उसकी प्रत्यंचा को चढ़ा देगा वही सीता जी का पति बनेगा। बड़े बड़े राजा प्रयास करते हैं परन्तु धनुष को हिला भी नहीं पाते। रावण भी धनुष को नहीं हिला पाता और अपमानित होकर चला जाता है। उसके अन्दर सीता जी से प्रतिशोध की ज्वाला जल रही होती है।
जब कोई धनुष नहीं उठा पाता है तो जनक जी परेशान हो जाते हैं कि संसार में कोई ऐसा वीर नहीं है जो उनकी पुत्री से विवाह कर सके। ये सुन कर लक्ष्मण जी क्रोधित हो जाते हैं और राम फिर धनुष उठा कर उसकी प्रत्यंचा चढाते हैं परन्तु धनुष टूट जाता है। श्री राम का विवाह सीता से हो जाता है।
शिव धनुष के टूटने से परशुराम क्रोधित हो जाते हैं परन्तु राम कि वाणी कि मधुरता देख कर वो समझ जाते हैं कि ये तो स्वयं नारायण के अवतार हैं। संतुष्ट हो कर वे तपस्या के लिए महेन्द्रू पर्वत पर चले जाते हैं।
लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का विवाह भी राजा जनक की पुत्रियों के साथ होता है।
रावण का अयोध्या पर आक्रमण
अपमानित रावण बदले कि भावना से अयोध्या पर आक्रमण कर देता है परन्तु राजा जनक, राजा दशरथ और कैकई की सम्मलित सेना उसका मुकाबला करती हैं। इस युद्ध में माली और माल्यवान मारे जाते हैं और बाकी सभी भाग जाते हैं। अयोध्या ये युद्ध जीत जाता है।
मंथरा की कहानी
मंथरा पिछले जन्म में एक अप्सरा थी। वो बहुत चंचल थी। इंद्र ने उसे एक ऋषि की तपस्या भंग करने के उद्देश्य से भेजा क्योंकि उसे लगता था कि तपस्वी कहीं इन्द्रलोक ना मांग ले। अप्सरा ने ऋषि को अपने प्रेम में फ़साने का प्रयास किया परन्तु ऋषि ने क्रोधित होकर उसे श्राप दे दिया कि तुझे अपने रूप पर बहुत अभिमान है तो जा तू बदसूरत हो जाएगी। लोग तेरा तिरस्कार करेंगे। जहाँ भी जाएगी केवल विनाश लाएगी।
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