आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा निकलती है। इस रथ यात्रा में जगन्नाथ जी का रथ, बलभद्र जी का रथ एवं सुभद्रा का रथ शामिल होता है। जगन्नाथजी का रथ 45 फुट ऊँचा और 35 फुट लम्बा तथा 35 फुट चौड़ा होता है। बलभद्र जी का रथ 44 फुट और सुभद्रा का रथ 43 फुट ऊँचा होता है। जगन्नाथजी के रथ में 16 पहिये तथा बलभद्र जी एवं सुभद्रा के रथ में 12-12 पहिये होते हैं। ये रथ प्रतिवर्ष नए बनाए जाते हैं। इन रथों को मनुष्य खींचते हैं। मंदिर के सिंह द्वार पर बैठकर भगवान जनकपुरी की ओर रथ यात्रा करते हैं। जनकपुरी पहुँचकर तीन दिन भगवान वहाँ ठहरते हैं। वहाँ उनकी भेंट लक्ष्मी जी से होती है। इसके बाद भगवान पुनः जगन्नाथ पुरी लौट आते हैं। इस वर्ष रथयात्रा 14 जुलाई 2018 को है।
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इस रथ यात्रा को देखने के लिए देश के कोने-कोने से यात्री आते हैं। इस मंदिर की प्रतिमाओं को वर्ष में एक बार इस दिन मंदिर से बाहर निकाला जाता है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की कथा
यह उत्सव आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के दिन उडीसा के पुरी नामक स्थान में यह उत्सव बड़े ही धूमधाम व श्रद्धा भक्ति से आयोजित किया जाता है। यहां श्री जगदीश भगवान को सपरिवार (सुभद्राजी सहित) विशाल रथ पर आरूढ़ करके भ्रमण करवाते हैं, फिर वापस लौटने पर यथास्थान स्थापित करते हैं। यह उत्सव अद्वितीय होता है। इस अवसर पर देश-विदेश के लाखों नर-नारी यहां एकत्र होते हैं।
इसी दिन दूसरे स्थानों (जयपुर आदि) पर भगवान श्री रामचन्द्र जी को रथारूढ़ करके मंदिर से दूसरी जगह ले जाकर वाल्मीकी रामायण (कैसे बना एक खूंखार डान्कू, महान तपस्वी? जानें वाल्मीकि की कहानी) के युद्ध कांड का पाठ सुनाते हैं और वहीं मुक्ता धान्य से बीजवपन करके चतुर्मासीय कृषि कार्य का शुभारम्भ करते हैं। भगवद्भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और उत्सव मनाते हैं।
पुरी में जिस रथ पर भगवान जी की सवारी चलती है, वह विशाल एवं अद्वितीय है। यह 45 फुट ऊंचा, 35 फुट लम्बा तथा इतनी ही चौड़ाई लिए होता है। इसमें 7 फुट व्यास के 16 पहिए होते हैं। इसी प्रकार बालभद्रजी का रथ 44 फुट ऊंचा, 12 पहियों वाला तथा सुभद्राजी का रथ 43 फुट ऊंचा होता है। इनके रथ में भी 12 पहिए होते हैं। प्रतिवर्ष नए रथों का निर्माण किया जाता है।
भगवान मंदिर के सिंह द्वार पर बैठकर जनकपुरी की ओर रथ-यात्रा करते हैं। जनकपुरी में तीन दिन का विश्राम होता है जहां उनकी भेंट श्री लक्ष्मीजी से होती है। इसके बाद भगवान पुनः श्री जगन्नाथ पुरी लौटकर आसनारूढ़ हो जाते हैं।
यहां यह उल्लेखनीय है कि भगवान के रथ में घोड़े आदि नहीं जुते होते, बल्कि भक्तगण एवं श्रद्धालु इस रथ को खींचते हैं और इनकी संख्या लगभग 4500 होती है।