कामदा एकादशी 2019 चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती हैं। कामदा का अर्थ होता है हर कर्म की इच्छा पूर्ण करने वाली। कामदा एकादशी 2019 सभी सांसारिक इच्छाओं को पूर्ण करती है।
कामदा एकादशी 2019 की व्रत कथा
प्राचीन समय में पुण्डरीक नामक एक राजा नागलोक में राज्य करता था। उसका दरबार अप्सराओं, किन्नरों व गंधर्वो से भरा रहता था। एक दिन जब ललित नामक गन्धर्व दरबार में गान कर रहा था तो अचानक उसे अपनी सुन्दर पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे।
इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया। उसने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। शापित होने पर ललित सहस्रों वर्ष तक राक्षस योनि में अनेक लोकों में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही।
अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती धी। एक दिन घूमते-घूमते वह दोनों विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले श्रृंगी ऋषि के पास पहुंचे और अपनी दशा के उद्धार का उपाय पूछने लगे। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी 2019 का व्रत करने का आदेश दिया।
एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और वे अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए। इस व्रत की कहानी को सुनकर हमें ज्ञात होता है कि कभी कभी छोटी-छोटी भूलों की बहुत बड़ी सजा मिलती है। ऐसे में यदि हम साहस व धैर्य से काम लें तो उन पर विजय पाई जा सकती है।
कामदा एकादशी 2019 की व्रत विधि
- कामदा एकदशी भगवान कृष्ण के आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाता है। भक्त पूजा क्षेत्र की सफाई करके और भगवान कृष्ण की एक मूर्ति रखकर अपनी प्रार्थना शुरू कर सकता है। वे चन्दन, फूल, फलों, धूप, दीपक आदि भगवान को अर्पित कर सकता है।
- जो लोग उपवास रखते हैं वे एकदशी के पहले दिन दूध, फल, सूखे फल, नट और सब्जियों से बना एक साधारण खाना खा सकते हैं, ताकि उनका मन, शरीर और आत्मा शांत रख सकें। यह सात्विक खाना है।
- अनाज, मूंग, गेहूं, चावल उन लोगों के लिए भी कड़ाई से निषिद्ध है जो उपवास नहीं रखते हैं।
- यह व्रत एकदशी के सूर्योदय से द्वादाशी के सूर्योदय तक चलता है। इस अवधि में किसी को भी खाना या पीना नहीं चाहिए।
- भक्त को दोपहर या रात में उपवास के दौरान सोना नहीं चाहिए। वे भगवान कृष्ण की स्तुति, मंत्र, गीत, प्रार्थना या जप कर सकते हैं। वे भगवत गीता या विष्णु शहस्त्रनाम को भी पढ़ सकते हैं। अपने आप को पूर्ण रूप से भगवान नारायण की भक्ति में लगाना होता है।
- द्वादाशी के सूर्योदय के बाद, भक्त को ब्राह्मण को भोजन कराना होता है और फिर प्रसाद से वे अपना उपवास तोड़ सकते हैं।