सती प्रथा का विरोध
एक बार तुलसी दास श्री राम के भजन गाते हुए सड़क पर चल रहे थे तब उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक दुल्हन को लेकर जा रहे हैं। दुल्हन ने तुलसी दास जी के पैर छूए तो तुलसी दास ने सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दे दिया। तभी लोगों ने कहा कि ये आपने क्या किया? ये तो सती होने जा रही है और आपने सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दे दिया। ये सुन कर तुलसी दास जी क्रोधित हो गए। एक नारी जो माँ है, बेटी है, इस संसार को जन्म देती है उसे जिंदा जलाने का कुकर्म करने जा रहे थे लोग। लोगों ने कहा कि ये परंपरा है और इसके विरुद्ध उन्हें कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है। अगर उन्हें इस बात से परेशानी है तो कहें श्री राम से कि उसका पति जीवित हो जाए।
तुलसी दास जी बोले, ठीक है। श्री राम और हनुमान जी इसके पति को जीवित करेंगे और इस बच्ची कि रक्षा करेंगे। ये कह कर तुलसी दास जी ने श्री राम के भजन गाना शुरू कर दिया। जैसे ही दुल्हन को चिता पर बैठाया गया, उसका पति जीवित हो गया।
नंदी की मूर्ति का प्रसाद खाना
मनकू नाम का एक खूंखार कातिल अपने पापों का प्रायश्चित करने तुलसी दास जी के पास गया। तुलसी दास जी ने उसे आश्वासन दिया कि उसके सारे पाप धुल जायेंगे और उसे अपने आश्रम में रहने का स्थान दिया। कलयुग के प्रभाव से उसने तुलसी दास पर हमला करने का प्रयास किया परन्तु तुलसी दास के तेज़ के आगे उसके अन्दर का शैतान कुछ नहीं कर पाया। तुलसी दास जी ने उसे राम के भजनों के माध्यम से ईश्वर भक्ति से जोड़ दिया।
काशी के पंडितों को तुलसी दास जी का मनकू कि सहायता करना रास नहीं आया। उन्होंने उसका विरोध किया तो तुलसी दास ने कहा कि वो यहाँ से कहीं नहीं जायेगा। तब काशी के पंडितों ने कहा कि अगर वो नहीं जायेगा तो तुलसी दास को भी काशी छोड़नी होगा। इस बात पर तुलसी दास ने कहा कि अगर बाबा विश्वनाथ चाहेंगे तभी वो काशी छोड़ेंगे। पंडितों ने कहा, तो ठीक है। अगर नंदी जी कि मूर्ति ने इस मनकू के हाथ से प्रसाद ग्रहण किया तो हम समझ लेंगे कि ये काशी में रह सकता है। तुलसी दास जी ने बात मान ली।
अगले दिन तुलसी दास मनकू को लेकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर गए और उसके हाथों नंदी जी को प्रसाद चढ़वाया। सभी सोच रहे थे कि आज तुलसी दास का सारा प्रताप यहीं समाप्त हो जायेगा क्योंकि मूर्ति कैसे प्रसाद खाएगी। परन्तु मूर्ति ने प्रसाद खा लिया। इन सबके पश्चात भी पंडितों ने इसे आखों का धोखा ही कहा।
रामायण का चोरी होना और हनुमान चालीसा की रचना
काशी के पंडित नहीं चाहते थे कि तुलसी दास संस्कृत छोड़ कर जन भाषा में रामायण की रचना करें। इसके लिए उन्होंने रामायण को ही चोरी करवाने के लिए बकसु चोर को कहा। पंडितों के डर से बकसु ने रामायण चुरा कर नदी में फेंक दी।
जब सुबह तुलसी दास को रामायण नहीं मिली तो वो रोने लगे। हनुमान जी कि आराधना में उन्होंने हनुमान चालीसा की रचना की। स्वयं हनुमान जी ने खोये हुए पन्नो को लिखा और तुलसी दास जी को भेंट किया।
बाबा विश्वनाथ के हस्ताकक्षर
जब कोई पैंतरा नहीं चला तो पंडितों ने तुलसी दास को कहा कि ये जन भाषा की रामायण बाबा विश्वनाथ कभी स्वीकार नहीं करेंगे। अगर ऐसा नहीं है तो रामायण पर बाबा विश्वनाथ के हस्ताकक्षर लेकर आओ। तुलसी दास जी ने रामायण बाबा की पिंडी के आगे रख दी और उस पर लिख गया – सत्यम, शिवम् , सुन्दरम
तुलसी दास जी का शरीर त्याग
तुलसी दास जी ने अपना शारीर त्याग दिया और एक बार फिर हनुमान जी अकेले रह गए। परन्तु जाने से पहले तुलसी दास जी प्राणियों में भक्ति की शक्ति जागृत कर गए और कलयुग को कमजोर कर गए।
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