वन में घूमते हुए श्री राम अत्तरी ऋषि से मिले। अत्तरी ऋषि सप्त ऋषि में से एक हैं और ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। उनकी धर्मपत्नी देवी अनुसुइया का सतित्व सर्वोपरि था। उनका पुत्र दत्तात्रेय, ब्रह्मा-विष्णु-महेश का त्रिमुखी था।
कैसे बनी देवी अनुसुइया त्रिदेवों से भी उच्च? जानें।
मेघनाद ने शुक्राचार्य के कथन पर अनेकों यज्ञ किये और अनेक सिद्धियाँ पायीं जिसमें से तामसी माया भी थी। तामसी माया के साथ वो हनुमान जी से युद्ध करने निकल पड़ा। हनुमान जी ने तामसी माया को ख़त्म करके मेघनाद को भगा दिया।
जटायु श्री राम का भक्त था। जब श्री राम पंचवटी के लिए मार्ग खोज रहे थे तब जटायु की मदद से वो पंचवटी पहुंचे।
साम ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया परन्तु ब्रह्मदेव जानते थे कि उसके जीवन में बस कुछ समय ही शेष रह गया है और ऐसे में उसका कोई भी वरदान व्यर्थ ही जाएगा। ऐसा सोच कर ब्रह्मा जी ने उसे एक खडग दिया और अदृश्य हो गए।
दंडकारणे में लक्ष्मण ने जब साम को देखा तो उसे युद्ध की चुनोती दे दी। साम ने युद्ध किया और मारा गया। इस बात का बदला लेने के लिए खर-दूषण ने श्री राम पर आक्रमण किया और राम के वाणों से परलोक सिधार गए।
जब सूर्पनखा को पता चला कि उसके पुत्र को मार दिया गया है तो वो लक्ष्मण जी के वध के इरादे से उन्हें ढूँढने निकली। श्री राम को देख कर वो पुत्र को भूल गयी और उनके रूप पर मोहित हो गयी। उसने एक सुन्दर स्त्री का रूप लिया और श्री राम को अपने जाल में फ़साने का प्रयास किया परन्तु श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उन्होंने कहा कि देवी मैं आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सकता पर हाँ थोड़ी दूर पर आपको एक ओर युवक मिलेगा, वो मुझसे भी ज्यादा सुन्दर है। वो शायद आपकी इच्छा पूरी कर दे। सूर्पनखा दुसरे युवक को देखने निकली तो उसे लक्ष्मण जी दिख गए। वो लक्ष्मण जी के पीछे पड़ गयी। लक्ष्मण जी माता-माता चिल्लाते हुए सीता जी के पीछे छिप गए। सीता जी को देख कर सूर्पनखा को लगा कि ये दोनों इसी स्त्री की वजह से उसे नहीं अपना रहे। उसने सीता जी पर हमला कर दिया जिसे देख लक्ष्मण जी ने गुस्से में उसके नाक और कान काट दिए।
सूर्पनखा के नाक कान काटे जाने पर उसने इसकी शिकायत अपने भाई रावण से की। रावण ने मारीच को आदेश दिया कि वो सुनहरे मृग का रूप लेकर राम कि कुटिया के पास जाए।
सुनहरे मृग को देख कर सीता जी ने राम से उसे पकड़ लाने के लिए कहा। श्री राम ने कहा कि सुनहरे मृग जैसी कोई चीज़ नहीं होती परन्तु सीता जी नहीं मानी। विवश हो कर श्री राम मृग के पीछे चले गए और लक्ष्मण जी को सीता जी की सुरक्षा के लिए छोड़ दिया।
राम ने मारीच को बाण मारा तो वो श्री राम कि आवाज में चिल्लाया। आवाज सुन कर सीता जी ने लक्ष्मण को कहा कि वो जाकर देखे कि उनके भाई किसी संकट में तो नहीं हैं। लक्ष्मण जी ने कहा कि ये आवाज श्री राम की नहीं है परन्तु सीता जी नहीं मानी। विवश हो कर लक्ष्मण जी ने कुटिया के चारो ओर एक रेखा खींची और कहा कि कुछ भी हो जाए इस रेखा को पार मत कीजियेगा। इतना कह कर लक्ष्मण श्री राम को ढूँढने चले गए।
रावण साधू का वेश धारण करके सीता जी से भिक्षा मांगने लगा। सीता जी ने भिक्षा देने का प्रयास किया पर वो बोला कि अगर भिक्षा देनी है तो रेखा के बाहर आकर देनी होगी। जब सीता जी ने मना किया तो वो वापस जाने लगा। साधू वापस ना चला जाए ये सोच कर सीता जी ने रेखा पार कर ली। साधू के वेश में राक्षस सामने आया और उसने सीता जी को खींच कर पुष्पक विमान में बैठा लिया।
जब गरुड़ ने देखा तो रोकने का प्रयास किया परन्तु रावण ने उसका वध कर दिया। सीता जी का अपहरण करके वो लंका ले आया। जब सीता को विभीषण और कुम्भकरण ने देखा तो उन्होंने उसे तुरंत सीता जी को छोड़ने की विनती की परन्तु उसने नहीं सुना। तब कुम्भकरण ने सीता जी को अशोक वाटिका में रखने का सुझाव दिया जिसे रावण ने मान लिया।
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