रावण ने कालनेमि नामक राक्षस को हनुमान जी को रोकने के लिए भेजा। कालनेमि ने साधू का वेश बनाया और श्री राम का जाप करने लगा। हनुमान जी ने राम का नाम सुना तो रुक गए। तब कालनेमि बोला कि तुम हनुमान हो और संजीवनी बूटी लेने आये हो। हनुमान जी ने जाना कि साधू अन्तर्यामी लगते हैं। कालनेमि ने पल भर में द्रोंगिरी पर्वत पर पहुचाने का आश्वासन दिया और कहा कि पास की झील में जाकर पहले हनुमान जी नहा लें। साधू की बात मान कर हनुमान जी नहाने चले गए। वहां एक मगरमच्छ से उनका युद्ध हुआ और वो मारा गया। वो मगरमच्छ एक अप्सरा में परिवर्तित हो गया। अप्सरा ने कहा कि उसका नाम धन्यमाली है और हनुमान जी के कारण उसका श्राप नष्ट हो गया। उसने बताया कि साधू एक दैत्य है और वो हनुमान जी को मारने के प्रयोजन से यहाँ आया है।
हनुमान जी ने कालनेमि का वध कर दिया और द्रोंगिरी पर्वत की ओर चले गए।
द्रोंगिरी पर्वत पहुँच कर हनुमान जी ने देखा कि संजीवनी बूटी को पहचानना बहुत मुश्किल है इसलिए उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया।
भरत अयोध्या के बाहर जंगल में थे। उन्होंने देखा कि एक वानर पहाड़ उठाये उड़ रहा है। उन्हें मायावी दानव जान कर अपने तीर से प्रहार कर दिया। तीर लगते ही हनुमान जी लड़खड़ा गए और उनके मुख से श्री राम का नाम निकला। श्री राम का नाम सुनकर भरत जी को अहसास हुआ कि उनसे भूल हो गयी। हनुमान जी ने लक्ष्मण जी के विषय में बताया तो भरत ने उन्हें अपने वाण पर बैठा कर पल भर में श्री राम के पास पहुंचा दिया।
संजीवनी बूटी की मदद से लक्ष्मण जी सचेत हो गए और मेघनाद से युद्ध करने के लिए तत्पर थे। मेघनाद ने जब ये खबर सुनी तो वो माता का यज्ञ करने चला गया। अगर यज्ञ सफल होगा तो मेघनाद अपराजित हो जायेगा। देवताओं को भय हुआ और उन्होंने ये बात हनुमान जी को कही। हनुमान जी ने सभी योद्धाओं के साथ मिल कर मेघनाद के सामने उसे अपशब्द कहने शुरू कर दिया। जब उसके धैर्य की सीमा समाप्त हो गयी तो उसने शस्त्र उठा लिए और उसका यज्ञ भंग हो गया। लक्ष्मण जी के साथ युद्ध में मेघनाद मारा गया। श्री राम ने वीर मेघनाद के शव को सम्मान सहित लंका पहुँचाया।
रावण के पतन पर सभी ग्रह उसका अपमान करने लगे। स्वयं को सर्वशक्तिमान बता कर उसे उसकी कुंडली सिखाने लगे। क्रोध में बलशाली रावण ने सभी ग्रहों को बंदी बना लिया। जो शनि सभी को तडपा सकता है उसे अपनी माया शक्ति में बाँध कर असहाय कर दिया और दिखा दिया कि रावण के बल के आगे ना तो कोई कुंडली है और ना ही कोई ग्रह।
हनुमान जी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने अपनी शक्ति से रावण की मायाशक्ति को समाप्त कर दिया और सभी ग्रहों को मुक्त कर दिया। प्रसन्न हो कर शनिदेव ने वचन दिया कि जब कोई शनिवार को हनुमान जी की पूजा करेगा उस पर शनि देव हमेशा प्रसन्न रहेंगे और वो उनकी साडेसाती से मुक्त रहेगा।
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