दैत्य शम्भ्साधन का भाई कुम्भ्साधन अपने भाई कि मृत्यु का प्रतिशोध लेने केसरी का वध करने गया परन्तु हनुमान जी ने उसे परलोक पहुंचा दिया।
हनुमान जी को उनके मित्रों ने बताया कि पर्वत कि गुफा में एक दानव है गोहसुर नाम का जो आस पास जाने वाले सभी जानवरों को अपनी शक्ति से खींच लेता है और उन्हें खा जाता है। हनुमान जी उसे देखने गए तो उसने उन्हें भी खींच लिया और खा लिया। उसके मुंह से हनुमान जी कि गदा टकराई और उसे चोट लग गयी। हनुमान जी ने फिर उस दानव का अंत कर दिया और सभी को उसके भय से मुक्त किया।
वानर होने के कारण हनुमान जी बहुत नटखट थे। केसरी जी ने उन्हें समीरा आश्रम में शिक्षा लेने के लिए भेजा परन्तु हनुमान जी ने सभी को परेशान कर दिया। अति शक्तिशाली होने के कारण वो तूफ़ान ला देते थे। कोई ऋषि-मुनि कुछ नहीं कर पाते थे क्योंकि हनुमान जी को ब्रह्मा जी का वरदान था और श्राप देकर कोई ब्रह्मा जी का अपमान नहीं करना चाहता था।
हनुमान जी ने कुछ वानरों को बालक बना दिया ताकि वो उनके साथ खेल सकें। अब सभी मिलकर ऋषि-मुनियों को परेशान करने लगे। जब सीमा समाप्त हो गयी तो एक ऋषि ने हनुमान जी को श्राप दिया कि वो अपनी सारी शक्तियां भूल जाएँ और जब कोई उन्हें उनकी शक्ति का ज्ञान कराये तभी उन्हें उसका पता चले। इस तरह ऋषि ने ब्रह्मा जी के वरदान कि अवेहलना भी नहीं की और हनुमान जी की शरारतों से मुक्ति भी मिल गयी।
राजा मनु ने इक्ष्वाकु वंश में राजा अजा के पुत्र के रूप में जन्म लिया और वे अयोध्या के राजा दशरथ बन गए। रानी शतरूपा ने राजा कौशल के घर जन्म लिया और इनका नाम कौशल्या था।
शम्भ्रासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर सोमाली से जा कर मिला और उन्होंने तय किया कि वो पुनः स्वर्ग पर आक्रमण करेंगे। केकसी ने उन्हें समझाया कि वो थोड़ी और प्रतीक्षा करें। एक बार दशानन को वरदान प्राप्त कर लेने दें। परन्तु सोमाली के धैर्य की सीमा समाप्त हो चुकी थी। दशानन के शीश काटने पर भी ब्रह्म देव प्रसन्न नहीं हो रहे थे और ना ही उनके प्रसन्न होने के कोई आसार नज़र आ रहे थे।
शम्भ्रासुर और सोमाली ने दैत्यों की सेना एकत्रित की और युद्ध के लिए तैयार हो गए।
पवन देव राजा दशरथ के पास गए और युद्ध के लिए उनका साथ माँगा। दशरथ जी ने वचन दिया कि दैत्य और देवताओं के इस युद्ध में मानव भी हिस्सा लेंगे और इस युद्ध की कमान वे स्वयं संभालेंगे। कैकई भी युद्ध में जाने के लिए तैयार हुईं।
मानवों के दृढ़ संकल्प और अस्त्र शक्ति के साथ देवताओं कि दैवीय शक्ति का समागम हुआ और वे दानवों पर टूट पड़े। मानवों को कमजोर समझने वाले दानव अपने प्राण बचाने के लिए संघर्ष करने लगे। मायावी युद्ध कि चेष्ठा की परन्तु देवताओं ने बिफल कर दी। युद्ध में कैकई ने दो बार राजा दशरथ के प्राण बचाए तो राजा दशरथ ने दो मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वचन दे दिया। सम्भ्रासुर परलोक सिधार गया परन्तु सोमाली को राजा दशरथ ने जीवन दान दिया क्योंकि हारे हुए शत्रु पर वार करना रघुकुल के नियमों के विरूद्ध था।
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