लोगों की हालत और धर्म के पतन को देख कर नारद जी से रहा नहीं गया और उन्होंने कलयुग को चुनौती दे दी। कलयुग के छूते ही नारद जी ने अपने सारी शक्तियां खो दीं। उन्हें एक पाखंडी बाबा, वरदाता, ने बंदी बना लिया। नारद जी चिल्लाते रहते थे कि ये झूठा है, धोखेबाज है, इसके जाल में मत फंसो परन्तु कोई नहीं सुनता था। हनुमान जी को जब इस विषय में पता चला तो उन्होंने नारद जी को मुक्त किया और उनकी शक्तियां उन्हें वापस की। फिर उन्होंने उस बाबा वरदाता का सत्य सबके समक्ष प्रस्तुत किया।
कलयुग के प्रभाव से सभी देवी देवता छुप गए। विधि के विधान के अनुसार कोई भी देवता प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आ सकता था। मनुष्यों को दर्शन देना अब संभव नहीं था। हनुमान जी बिलकुल अकेले पड़ चुके थे। इस कलयुगी दानव से अब उन्हें ही लोहा लेना था। हर तरफ अधर्म होते देख हनुमान जी असहाय महसूस करने लगे। यहाँ तक कि शिव जी ने उन्हें आज्ञा दी थी कि वो कलयुग के कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। ऐसा लगता था कि कलयुग उनके मुख पर हंस रहा है और वो विवश हैं।
कलयुग से लड़ने का एक ही मार्ग था, धर्म का प्रचार। हनुमान जी की सहायता करने के लिए ब्रह्मा जी ने वाल्मीकि जी को पुनर्जन्म लेने के लिए कहा।
उत्तर भारत के राजापुर गाँव में पंडित आत्माराम और उनकी पत्नी हुलसी रहती थीं। शिव जी के आशीर्वाद से हुलसी माँ बनने वाली थीं। परन्तु जैसे ही उन्होंने गर्भ धारण किया, उनके घर विपत्तियाँ आने लगीं। 12 माह तक उनके बच्चा नहीं हुआ तो गाँव वाले उसे शैतान समझने लगे और उन्हें गाँव से बाहर निकालने का प्रयास करने लगे। हनुमान जी ने अपनी शक्तियों से तूफ़ान के माध्यम से गाँव वालों को कहा कि वे आत्माराम को बाहर निकालने का विचार त्याग दें परन्तु शिव जी ने कलयुग के कार्य में दखल ना देने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस युग में अच्छे लोगों को तकलीफों और संघर्षों से ही सफलता मिलेगी। जो चल रहा है उसे चलने दें और भक्तों कि रक्षा करें।
आत्माराम के घर बच्चे ने जन्म लिया और सबसे पहला शब्द वो बोला, राम। इसलिए उसका नाम रामबोला रख दिया गया। जन्म लेते ही रामबोला का आकर किसी 5 वर्षीय बालक के समान था।
गाँव वालों ने कहा कि ये मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है और पूरे गाँव के लिए अशुभ है इसलिए इसे गाँव से बाहर करो। गाँव वालों के दबाब से आत्माराम ने बच्चे का त्याग किया और उसे अपनी नौकरानी को सौंप दिया। नौकरानी का नाम चुनिया था। चुनिया उसे लेकर गाँव से बाहर चली गयी। पुत्र के वियोग से हुलसी ने उसी दिन दम तोड़ दिया।
गाँव के बाहर चुनिया को किसी ने सहारा नहीं दिया। तब हनुमान जी साधू का वेश रख कर उन्हें सांत्वना और हिम्मत देते रहे। एक दिन चुनिया को एक सर्प ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। रामबोला बिलकुल अकेला पड़ गया। लोगों ने सोचा कि ये पूरी तरह से अभिशप्त है और इसकी छाया पड़ना भी अपना विनाश करवाना है और इसीलिए किसी ने उसका साथ नहीं दिया।
एक दिन एक ढोंगी साधू ने उसे ज़हर देने का प्रयास किया परन्तु साधू के वेश में हनुमान जी ने वो ज़हर खा लिया। जिस रूद्र ने हलाहल अपने अन्दर समाया हुआ है उसके अवतार को ये साधारण ज़हर क्या ही असर करता।
हनुमान जी, नरहरी आनंद जी के पास पहुंचे और उनसे कहा कि वे रामबोला का पालन पोषण करें और उसे उच्च शिक्षा दें। नरहरी आनंद गुरु अनंतानंद के शिष्य थे। हनुमान जी को पता था कि कलयुग के प्रभाव जैसे घृणा, द्वेष, सुख, दुःख, स्वार्थपरता, लालच आदि से परे हैं और इसलिए वे रामबोला का त्याग नहीं करेंगे। नरहरी आनंद ने रामबोला कि शिक्षा आरम्भ कर दी। आश्रम में सभी देख कर चकित रह गए जब वे शिव जी के महान मन्त्रों का स्वयं उच्चारण करने लगे।
यज्ञोपवीत संस्कार के समय हनुमान जी ने सलाह दी कि इनका नाम बदल देना चाहिए। हनुमान जी को याद आया कि जब एक बार उनकी क्षुधा शांत नहीं हो रही थी तब वाल्मीकि जी ने ही सीता माता को तुलसी के पत्ते के विषय में बताया था। ये रामबोला वाल्मीकि जी का ही अवतार था इसलिए इनका नाम तुलसी रख दिया गया।
नरहरी आनंद, तुलसी दास को अपने गुरु भाई सनाथन के पास कशी ले गए। सनाथन संस्कृत के विद्वान् थे इसलिए उन्होंने तुलसी दास को वेद और पुराणों का ज्ञान दिया।
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