गरुण को अपनी शक्ति और तीव्रता पर अभिमान हो गया। उसे लगने लगा कि नारायण उसके बिना कहीं नहीं जा सकते। उसी प्रकार जब श्री कृष्णा पारिजात लेने स्वर्ग गए थे तब उन्हें इंद्र से युद्ध करना पड़ा था। इंद्र ने वज्र का प्रहार किया था जो श्री कृष्ण ने सुदर्शन से विफल कर दिया था। तब से सुदर्शन को लगने लगा था कि जब नारायण पर कोई और विकल्प नहीं बचता तो वे उसी का उपयोग करते हैं। सत्यभामा को अपनी सुन्दरता पर बहुत अभिमान था। उन्हें लगता था कि वो बहुत सुन्दर हैं इसलिए श्री कृष्ण पर उनका हक है और उन पर कोई एहसान नहीं किया गया है।
एक बार श्री कृष्ण ने गरुड़ को हनुमान जी को बुलाने के लिए भेजा और कहा कि कहना श्री राम ने बुलाया है। सुदर्शन को कहा कि दरवाजे से किसी को भी अन्दर मत आने देना। सत्यभामा को अपने साथ बैठाया और स्वयं श्री राम के अवतार में बैठ गए।
जब गरुड़ हनुमान जी के पास पहुंचा तो बोला कि मेरे स्वामी ने आपको अभी बुलाया है। हनुमान जी ने ध्यान नहीं दिया। गरुड़ क्रोध में हनुमान जी से उलझ गया और हनुमान जी ने उसे दूर फेंक दिया। वापस आकर बोला कि श्री राम ने बुलाया है मेरी पीठ पर बैठ जाओ जल्दी पहुँच जायेंगे। हनुमान जी बोले तुम जाओ में आता हूँ।
हनुमान जी द्वार पर पहुंचे तो सुदर्शन ने उन्हें रोक दिया। हनुमान जी ने उसे अपने दांतों में दबा लिया और अन्दर चले गए। अन्दर जाकर सुदर्शन को श्री राम के चरणों में रख दिया और बोले, प्रभु माता कहाँ हैं? और ये कौन दासी आपके साथ बैठी हुई है? इतनी देर में गरुड़ हांफता हुआ श्री राम के पास पहुंचा तो देखा हनुमान जी पहले से ही मौजूद हैं।
हनुमान जी ने एक बार में सुदर्शन, गरुड़ और सत्यभामा, तीनों का अभिमान तोड़ दिया।
महाभारत के युद्ध में हनुमान जी अर्जुन के रथ पर विराजमान थे। चूँकि पूरे युद्ध का दारम दार अर्जुन के ऊपर था इसलिए श्री कृष्ण उसके सारथी बने और महाबली हनुमान को उसकी और उसके रथ कि रक्षा करने के लिए रथ के ध्वज पर बैठा दिया।
जब कर्ण से अर्जुन का युद्ध हुआ तो कर्ण के महाभयंकर अस्त्रों से हनुमान जी ने अर्जुन कि रक्षा की। काफी बार तो ऐसा प्रतीत हुआ कि अर्जुन का रथ कर्ण के प्रहारों को निगल गया हो। महाबली हनुमान ने उन वाणों से अर्जुन की रक्षा की जिसका जवाब अर्जुन के पास नहीं होता था।
जब युद्ध समाप्त हुआ और अर्जुन अपनी वीरता के गुण गा रहा था तब श्री कृष्ण ने उसे हनुमान जी के विषय में बताया कि वो उसकी और उसके रथ की रक्षा कर रहे थे। हनुमान जी बोले कि सभी के वाणों से रक्षा हुई पर कर्ण के वाणों से वो रथ को नहीं बचा पाए। तब अर्जुन ने कहा कि रथ तो एकदम ठीक है। तब हनुमान जी ने अपना ध्वज रथ से हटाया और वो धमाके के साथ फट गया। अर्जुन को तब कर्ण के बल का एहसास हुआ।
द्वापर युग का अंत और कलयुग का प्रारंभ
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