एक माह बीत गया और सीता माता की कोई खबर नहीं मिली। जब सभी वानर समुद्र तट पर परेशान खड़े थे तभी एक गिद्ध की नज़र उन पर पड़ी। लक्ष्मण जी को लगा की वो जटायु है और उन्होंने उसे जटायु कह कर संबोधित किया। जटायु का नाम सुन कर वो बोला की जटायु तो उसका भाई है वो तो सम्पाती है। तब उसने बताया कि एक बार जटायु और उसने सूर्य तक उड़ने की प्रतिस्पर्धा की। सूर्य के नज़दीक पहुँचते ही उनके पंख जलने लगे। अपने छोटे भाई जटायु को बचाने के लिए उसने उसे अपने पंखों के अन्दर छिपा लिया। सम्पाती के पंख जल गए परन्तु जटायु बच गया।
लक्ष्मण जी ने जटायु की मृत्यु का समाचार उसे दिया कि सीता माता की रक्षा करते हुए उसने अपने प्राण दे दिए। ये सुन कर सम्पाती को अपने भाई पर बहुत गर्व हुआ। उसने कहा कि वो एक गिद्ध है और इसलिए उसकी दृष्टि बहुत तीव्र है। वो बता सकता है कि सीता जी कहाँ है। फिर उसने देख कर बताया कि सीता जी अशोक वाटिका में हैं। इतना कह कर सम्पाती ने अपना देह त्याग कर दिया।
लंका तक पहुँचने के लिए हनुमान जी को समुद्र लांघना था। इतना विशाल समुद्र कैसे पार होगा ये सोच कर हनुमान जी व्यतिथ थे तभी जामवंत जी ने उनकी प्रशंसा में उन्हें ज्ञान कराया कि वो सर्वशक्तिमान रूद्र अवतार हनुमान हैं। जो असंभव को संभव कर दे वो हनुमान है। जो सूर्य का भक्षण करे वो हनुमान है। जो वज्र के समान कठोर है वो हनुमान है। जो श्री राम का सर्वश्रेष्ठ भक्त है वो हनुमान है। जामवंत जी की बातें सुन कर हनुमान जी का श्राप टूट गया और उन्हें अपनी सारी शक्तियों का स्मरण हो गया।
प्रभु श्री राम का नाम लिया और हनुमान विशालकाए हो गए। फिर उन्होंने छलांग लगा दी।
जब हनुमान जी सागर पार कर रहे थे अभी सागर देव ने मैनाक पर्वत से कहा कि इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के पुत्रों ने हमेशा सागर की मदद की है इसलिए इनका वंश सागर के लिए पूजनीय है। उन्होंने मैनाक पर्वत को कहा कि वो ऊपर उठ कर हनुमान जी को थोडा आराम करने दे।
मैनाक पर्वत समुद्र से उठ कर हनुमान जी से विनती करने लगा कि वो कुछ देर विश्राम करें। हनुमान जी रुके तब उसने अपनी कहानी सुनाई कि पुराने समय में पर्वतों के भी पंख हुआ करते थे। पक्षियों की तरह वो भी उड़ा करते थे परन्तु उनके उड़ने से मनुष्य, जानवर सभी भयभीत रहते थे कि कहीं वो उनके ऊपर ना गिर जाएँ। इसलिए इंद्र ने उन सभी के पंख काट दिए और अपने वज्र से उन्हें नष्ट करने लगे। तब पवन देव ने मैनाक पर्वत को सागर की गहराइयों में पहुंचाकर उसके प्राण बचाए थे। मैनाक पवन देव का आभारी है।
हनुमान जी समुद्र के ऊपर उड़ते हुए आगे बढे तो उन्हें एक विशालकाए स्त्री मिली। वो नाग माता सुरसा थीं। वो अपनी भूख शांत करने के लिए हनुमान जी को खाना चाहती थीं। हनुमान जी ने कहा, ठीक है आप मुझे खा सकती हैं। इतना कह कर हनुमान जी ने अपना आकर बढ़ाना शुरू कर दिया। हनुमान जी के आकर के साथ सुरसा भी अपना आकर बढ़ा रही थी। हनुमान जी आकर बढाते गए और सुरसा भी बढ़ाती गयी। फिर एक दम हनुमान जी बहुत ही छोटे आकर के हो गए और सुरसा के मुख में जाकर वापस आ गए। सुरसा ने प्रसन्न हो कर हनुमान जी को बताया कि देवताओं की आज्ञा से वो हनुमान जी की परीक्षा ले रही थी।
लंका के द्वार पर पहुँच कर हनुमान जी की भेंट द्वार रक्षक लंकिनी से हुई।
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