कलयुग के प्रभाव से तुलसी दास को रत्ना से मोह हो गया। रत्ना, दीनबंधु पाठक जी की पुत्री थीं। रत्ना और तुलसी दास का विवाह हो गया। तुलसी दास घर गृहस्थी और प्रेम प्रसंग में ऐसा डूब गए कि वो अपने धरती पर अवतरित होने के कारण को ही भुला बैठे। उनका रत्ना के प्रति सार्वजानिक होकर प्रेम करना स्वयं रत्ना को अच्छा नहीं लगता था।
पंडित नरहरी जब मृत्यु शैया पर थे तब उन्होंने रत्ना से समाज के लिए त्याग करने को कहा। उन्होंने कहा कि वो तुलसी दास को छोड़ दें क्योंकि तुलसी अपने मार्ग से भटक गया है। उसे एक महान कार्य करना है परन्तु जब तक रत्ना उसके साथ है वो कुछ नहीं करेगा।
काफी प्रयासों के बाद भी जब तुलसी दास में कोई परिवर्तन नहीं आया तो रत्ना ने कठोर निर्णय लेकर तुलसी दास को छोड़ दिया।
गम में डूबे तुलसी दास को भगवान् का सहारा दिखा। अपनी कविताओं से वो ईश्वर के निकट पहुँच गए। उन्होंने श्री राम कि प्रश्नावली बनाई और लोगों से उनके प्रश्नों को पूछते थे। फिर श्री राम के जीवन से उनके प्रश्नों को जोड़कर उन्हें उत्तर देते थे।
तुलसी दास जी ने देखा कि एक आदमी नदी के किनारे बैठ कर रो रहा है। वो पहलाद राज्य के राजा कीरत सिंह का शाही ज्योतिष गंगाराम था। तुलसी दास जी ने उसके रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि कीरत सिंह का बड़ा बेटा सूरज सिंह जंगल में शिकार के लिए गया था और वापस नहीं लौटा। लोगों ने बताया कि उसे एक शेर ने मार डाला है। राजा ने मुझे बुलाया और कहा कि अगर मेरी भविष्यवाणी गलत निकली तो वो मुझे मृत्युदंड दे देता अन्यथा बहुत बड़ा पुरस्कार देगा। मेरे पास कल दोपहर तक का ही समय है।
तुलसी दास जी उसे अपने आश्रम में लेकर गए और उसे अपनी कृतियों में से किसी एक पन्ने को चुनने को कहा। उसने जो पन्ना चुना वो सीता जी के स्वयंवर का था जिसमें राम सीता जी के महल में शाम को पहुंचे थे। तुलसी दास जी बोले कि सूरज सिंह जिंदा है और शाम तक घर पहुँच जायेगा।
शाम को गंगाराम ख़ुशी से चिल्लाते हुए तुलसीदास जी के पास पहुंचा और उन्हें पुरस्कार में मिला देर सारा सोना दिखाया। तब तुलसी दास जी ने कहा कि ये सब श्री राम और हनुमान जी कि महिमा है। गंगाराम ने श्री राम और हनुमान जी के मंदिर बनवाने का प्रण लिया।
तुलसी दास जी हमेशा से हनुमान जी के साक्षात दर्शन करना चाहते थे। वो अपनी व्यथा एक बरगद के वृक्ष से कहते थे। उस वृक्ष पर भुसुंडी नाम का भूत था। उसने तुलसी दास को बताया कि वो हनुमान जी से बचपन से मिलता हुआ आ रहा है। ऐसा एक दिन भी नहीं हुआ जब हनुमान जी उससे मिले ना हों। जो साधू रोज़ उससे मिलने आते हैं वही हनुमान जी हैं। तुलसी दास दौड़ कर साधू के पास गए और उनके पैर पकड़ लिए। फिर उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वे श्री राम और लक्ष्मण के दर्शन उन्हें करायें।
हनुमान जी ने तुलसी दास जी को चित्रकूट के घाट पर जाने के लिए कहा। वहां वो चन्दन घिस कर श्री राम के भक्तों के माथे पर लगा रहे थे। इसी बीच श्री राम और लक्ष्मण भी तिलक लगवा कर चले गए और तुलसी दास को पता भी नहीं चला। बाद में हनुमान जी ने उन्हें बताया कि प्रभु तो आकर चले गए। तुमने अगर पहचान लिया होता तो थोड़ी देर और रुक जाते। तब तुलसी दास बोले कि इस कलयुग की छाया में मैं कैसे प्रभु को पहचान पाता। तब हनुमान जी ने एक युक्ति निकाली। उन्होंने तुलसी दास जी को कहा कि वो श्री राम को कहेंगे कि वो तुलसी दास को भी तिलक लगायें। जो कोई तुम्हें भी तिलक लगाये तो समझ लेना वही श्री राम हैं।
हनुमान जी ने श्री राम को एक बार पुनः दर्शन देने के लिए तैयार कर लिया। जब श्री राम ने वापस तिलक लगाया तो तुलसी दास समझ गए कि प्रभु आ गए है। उसने उनके पैरों को पकड़ लिया और श्री राम ने अपने मूल रूप में उन्हें दर्शन दिए।
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