भरत वन में जाकर राम से मिले और उन्हें वापस चलने को कहा परन्तु राम ने मना कर दिया। भरत अपने साथ उनकी चरण पादुका ले आये और उसे सिंहासन पर रख दिया। भरत ने घोषणा की कि ये अयोध्या राम राज्य है और जब तक स्वयं राम इस सिंहासन पर विराजमान नहीं हैं तब तक उनकी चरण पादुका इस पर रहेगी। भरत राज्य के सारे कार्य सँभालने लगे।
रावण ने अपने दोनों पुत्रों, मेघनाद और अक्षय कुमार, के साथ मिलकर सर्वेष्टि यज्ञ किया और अपने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से दोनो पुत्रों को व्यस्क बना लिया। अब रावण बहुत शक्तिशाली हो चूका था।
मेघनाद ने गुरु शुक्राचार्य से पुछा कि किस तरह वो अपने पिता से भी अधिक शक्तिशाली बन सकता है? इस पर शुक्राचार्य ने कहा कि उसे अग्निष्टोम यज्ञ करना होगा। उससे काफी सिद्धियाँ मिलेंगी जो रावण के पास भी नहीं हैं। फिर उसे 6 और यज्ञ करने होंगे। उसके बाद वो इंद्र को भी पराजित कर सकेगा।
रसातल के एक साम्राज्य, कालिकेय के राजा विधुतजिभा के साथ रावण की बहन सूर्पनखा का विवाह हुआ था। उन्हें एक पुत्र हुआ साम जो पैदा होते ही पूर्ण मानव बन गया। रावण ने पाताल लोक को जीतने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया। वो बहुत से साम्राज्य को जीतता हुआ आगे बढ़ रहा था। कालिकेय के अन्धकार में उसने गलती से विधुतजिभा का वध कर दिया। अपनी इस गलती के प्रायश्चित के लिए वो साम और सूर्पनखा को साथ लंका ले आया।
इक्ष्वाकु का सबसे छोटा बेटा, दंड, एक बिगाड़ा हुआ इंसान था। इक्ष्वाकु ने उसे सुधारने का बहुत प्रयास किया परन्तु वो नहीं सुधरा। तब उन्होंने गुरु शुक्राचार्य को उसे शास्त्र, राजनीति और शिष्टाचार का ज्ञान देने की विनती की। गुरु शुक्राचार्य ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया परन्तु वो अपनी आदतों से बाज नहीं आया। एक दिन वो शुक्राचार्य से मिलने उनकी गुफा में गया। वहां उसने शुक्राचार्य की पुत्री अजा को अकेले पाया। दुष्ट दंड ने अजा की पवित्रता नष्ट कर दी। जब शुक्राचार्य लौट कर आये तो उन्होंने अपनी पुत्री को बुरी हालत में पाया। उन्होंने क्रोध में अपनी मन्त्रों की शक्ति से दंड को उसके महल और वन सहित जिंदा भस्म कर दिया। काफी सालों तक वो ज़मीन बंजर पड़ी रही पर प्रकृति के बदलाव से वो वन फिर से हरा-भरा हो गया। धीरे धीरे साधू और तपस्वी आकर वहां रहने लगे और वो धरती पवित्र हो गयी। वो जगह दंड से जुडी होने के कारण दंडकारणे कहलाई।
दंडकारणे में बढ़ते हुए सत्कर्म और ऋषि मुनियों को देख कर रावण ने खर, दूषण और साम्भ को वहां उत्पात मचाने और अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। परन्तु हनुमान जी ने उनकी मार लगा कर उन्हें वापस लंका भागने को विवश कर दिया।
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