सह्याद्री पर्वत पर कुम्भकरण का पुत्र भीमासुर अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए श्री राम और वानरों के खिलाफ योजना बना रहा था। उसकी माता कर्कटी उसे प्रेरित करती रहती थी। कथा ऐसी है कि जब रावण ने कुम्भकरण को युद्ध के लिए जगाया तो वो विशाल दानवों की सेना एकत्रित करने के लिए सह्याद्री पर्वत पर गया। वहां उसे कुम्भट नाम का दैत्य मिला जिसके पास विशाल सेना थी। वो सेना देने को तैयार हो गया परन्तु इस शर्त पर कि कुम्भकरण उसकी पुत्री कर्कटी से विवाह करेगा। कुम्भकरण को अपने भाई की सहायता के लिए सेना की आवश्यकता थी इसलिए वो तैयार हो गया और दैत्य परंपरा से चुपचाप विवाह कर लिया। बाद में कर्कटी ने पुत्र को जन्म दिया परन्तु तब तक कुम्भकरण की मृत्यु हो चुकी थी।
नारद जी ने हनुमान जी को कहा कि वो जाकर भीमासुर को समझायें कि वो प्रतिशोध की भावना अपने मन से निकाल दे। हनुमान जी ने भीमासुर को समझाया कि उनके पिता एक महान योद्धा होने के साथ साथ अच्छे विचारों वाले भी थे। उनकी मृत्यु केवल इस कारण हुई कि अपने भाई के लिए उन्होंने अन्याय की तरफ से युद्ध किया। हनुमान जी ने भीमसुर को ब्रह्मा जी की तपस्या कर वरदान लेने का भी सुझाव दिया।
श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ की घोषणा की। ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि अश्वमेघ यज्ञ के लिए सीता जी का होना ज़रूरी है तो उन्होंने सोने कि मूर्ति का निर्माण करवाया। जब कारीगर मूर्ति बना रहे थे तो हनुमान जी ने देखा कि मूर्ति बिलकुल सीता माता की तरह है। उन्होंने कारीगरों से पुछा कि बिना माता के आपने इतनी सुन्दर और सटीक मूर्ति कैसे बनाई? कारीगर बोले, जिस तरह सीता माता आपके ह्रदय में निवास करती हैं उसी तरह वे सभी अयोध्या वासिओं के ह्रदय में निवास करती हैं बस आपकी तरह सीना चीर कर नहीं दिखा सकते।
काशी नरेश सौभद्र से एक बार ऋषि विश्वामित्र का गलती से अपमान हो गया। सभी ऋषि मुनियों को प्रणाम किया परन्तु विश्वामित्र को करना भूल गए। क्रोध में विश्वामित्र ने श्री राम से वचन ले लिया कि वो उसे मृत्यु दंड देंगे। श्री राम ने विश्वामित्र को समझाने का प्रयास किया परन्तु वो नहीं समझे। वचन पूर्ण करने के लिए श्री राम सौभद्र को मारने निकले।
प्राण बचाने के लिए सौभद्र इधर उधर भाग रहे थे। नारद मुनि ने उन्हें सलाह दी कि वो माता अंजना की शरण में जाएँ। सौभद्र ने माता अंजना से वचन लिया कि वो उनकी सहायता करेंगी। माता ने हनुमान जी को आदेश दिया कि वो सौभद्र के प्राणों की रक्षा करें।
हनुमान जी ने सौभद्र को कहा कि वो जय श्री राम का जाप करे और बस खड़ा रहे। श्री राम उसे मारने आये तो हनुमान जी और सौभद्र दोनों जय श्री राम का जाप कर रहे थे। श्री राम ने वाण छोड़ा परन्तु वो सौभद्र तक पहुँचने से पहले ही अदृश्य हो गया। श्री राम ने और भी घटक वाण छोड़े पर सब विफल हो गए। फिर श्री राम ने राम वाण का संधान करना चाहा तो विश्वामित्र ने रोक दिया कि इतनी छोटी बात के लिए राम वाण का उपयोग ठीक नहीं। सौभद्र ने दौड़कर विश्वामित्र के पैर पकड़ लिए और उनसे माफ़ी मांगी। विश्वामित्र ने उन्हें माफ़ किया और वचन लिया कि वो उन्हें काशी में भोज पर आमंत्रित करेगा।
शुक्राचार्य ने विभीषण पर आक्रमण करने के लिए मुल्कासुर और विरूपा को प्रकट किया। विरूपा एक सुन्दर राक्षसी थी। उसने विभीषण की पत्नी सरमा की दूर की बहन बता कर महल में प्रवेश कर लिया और विभीषण को अपने रूप के जाल में फंसाने का प्रयास किया। मुल्कासुर ने विभीषण पर आक्रमण कर दिया जिसमे प्रचंडासुर ने भी साथ दिया। विभीषण और सरमा वहां से भाग गए। उन्होंने श्री राम और हनुमान जी का स्मरण किया। हनुमान जी श्री राम के साथ प्रकट हुए। श्री राम ने मुल्कासुर का वध किया और हनुमान जी ने प्रचंडासुर का। विरूपा को स्त्री होने की वजह से हनुमान जी ने चेतावनी देकर छोड़ दिया।
राम राज्य के कारण डांकू भी अधर्म छोड़ कर साधुओं के समान भिक्षा ले कर जीवन यापन कर करे थे। अयोध्या की सीमा पार करते ही उनपर अपने डांकू होने का प्रभाव पड़ने लगा। उन्होंने पंडित विप्रदास और उसकी पत्नी को आते हुए देखा तो लूटने का विचार कर लिया। पंडित विप्रदास बहुत बड़े हनुमान भक्त थे। उन्होंने हनुमान जी का स्मरण किया और हनुमान जी ने डाकुओं को मार कर भगा दिया।
ये खबर जब वहां के राजा मृगांक को पता चली तो उन्होंने पंडित विप्रदास को बुलाया और कहा कि आप आज से हमारे गुरु और सलाहकार हैं। अब आप हमें भी हनुमान जी की मदद से श्री राम जैसा महान बनाएं। विप्रदास ने कहा कि महान तो मनुष्य अपने कर्मों से बनता है। जब विप्रदास ने उसका पद ग्रहण करने से मना कर दिया तो उसने उन्हें कारावास में डाल दिया।
विप्रदास ने हनुमान जी का ध्यान किया। हनुमान जी प्रकट हुए और विप्रदास को आजाद कर दिया। साथ ही मृगांक को उठा कर श्री राम के चरणों में डाल दिया। मृगांक ने क्षमा मांगी तो राम से उसे माफ़ कर दिया।
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