हनुमान जी से प्रतिशोध लेने के लिए शुक्राचार्य ने प्रचंडासुर को आदेश दिया कि वो जाकर हनुमान जी कि माँ, अंजना का वध कर दे। हनुमान जी ने प्रचंडासुर को बहुत मारा और उसका वध करने वाले थे कि कोमल ह्रदय माता अंजना को उस पर दया आ गयी और उन्होंने हनुमान जी को रोक दिया। प्रचंडासुर एक बार फिर हनुमान जी के हाथों बच गया।
इधर अयोध्या में सीता माता ने गर्भ धारण कर लिया।
हनुमान जी ने देखा कि सीता माता सिन्दूर लगा रही हैं। उन्होंने माता से पुछा कि ये क्यों लगा रही हो? तो माता ने बताया कि स्वामी के सौभाग्य के लिए सिन्दूर लगाया जाता है। हनुमान जी ने सोचा कि अगर चुटकी भर सिन्दूर से स्वामी को सौभाग्य मिलेगे तो अगर पूरे शरीर पर लगा लिया जाए तो? ये सोच कर हनुमान जी बाजार की तरफ भागे और सिन्दूर का पूरा बोरा अपने सर पर उड़ेल लिया। परन्तु हनुमान जी के वानर शरीर पर बड़े बड़े बाल होने के कारण सारा सिन्दूर झड गया।
हनुमान जी परेशान हो गए कि कहीं स्वामी पर कोई विपदा तो नहीं आ जाएगी? तभी उन्हें एक तेल का डिब्बा मिला। उन्होंने वो अपने ऊपर उड़ेल लिया और फिर एक बोरा सिन्दूर और डाल लिया। सिन्दूर चिपक गया। हनुमान जी प्रसन्न होकर सीता जी के पास पहुंचे। हनुमान जी को ऐसी हालत में देख कर सीता जी को बहुत हंसी आई और पुछा कि ये क्या हाल बनाया है? हनुमान जी बोले कि अगर एक चुटकी सिन्दूर से स्वामी को सौभाग्य प्राप्त होगा तो अब तो स्वामी को तीनों लोकों का सौभाग्य प्राप्त हो जायेगा। ये सुन कर सीता माता अति प्रसन्न हुईं और उन्हें वरदान दिया कि उनकी सारी प्रतिमाओं पर सिन्दूर चढ़ाना एक रिवाज बन जाएगी और उनके सिन्दूर से ही लोग तिलक लगायेंगे।
हनुमान जी कि भक्ति से प्रसन्न होकर सीता जी ने उन्हें मोतियों की एक माला भेंट की। हनुमान जी उस माला को बड़े गौर से देख रहे थे। फिर एक स्थान पर बैठ कर उन्होंने माला को तोडा और उसके एक-एक मोती को गौर से देख कर फैंकने लगे। यह देख सीता माता को दुःख हुआ कि उनकी दी हुई माला हनुमान जी ने तोड़ दी और उसके मोती फेंक रहे हैं।
जब सभी ने पुछा कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं तो हनुमान जी बोले कि उन्हें मोतियों में श्री राम नहीं दिख रहे। अगर श्री राम नहीं दिखेंगे तो ऐसी चीज़ का ना होना ही बेहतर है। लोगों ने कहा कि हनुमान जी ये शरीर भी तो नश्वर है। इसमें कौन से श्री राम दिखते हैं। हनुमान जी बोले कि मेरे सीने में श्री राम रहते हैं। लोगों ने हनुमान जी की बात मजाक में ले ली तो हनुमान जी ने अपना सीना चीर कर दिखा दिया। उनके सीने में सभी को श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी के दर्शन हुए। यह देख श्री राम अपने सिंहासन से दौड़कर आये और हनुमान जी को अपने गले से लगा लिया।
सीता जी ने सोचा कि क्यों ना हनुमान जी को भोजन पर आमंत्रित किया जाए? उन्होंने स्वयं हनुमान जी के लिए भोजन बनाया और उन्हें परोसा। सीता जी के हाथों का स्वादिष्ट भोजन हनुमान जी करते ही चले गए। उनकी भूख बढती ही चली गयी। सीता जी का सारा भण्डार खाली हो गया परन्तु हनुमान जी कि क्षुधा शांत नहीं हुई। विचलित सीता जी ने वाल्मीकि जी से पुछा कि वो क्या करें? तब वाल्मीकि जी ने बताया कि जब तक श्री राम तुलसी का पत्ता ग्रहण नहीं करते तब तक उनका भोजन अधूरा रहता है। हनुमान जी अपने प्रभु की क्षुधा शांत करना चाहते हैं परन्तु अभी तक उन्हें तुलसी का पत्ता नहीं मिला इसलिए वो संतुष्ट नहीं हो रहे। सीता जी ने बिना विलम्ब के हनुमान जी को तुलसी का पत्ता खिला दिया और उनकी क्षुधा शांत हो गयी।
श्री राम ने देखा कि एक रजक नाम का धोबी अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल रहा है। वो चिल्ला रहा था कि उसकी पत्नी को किसी पराये पुरुष ने स्पर्श किया है और वो अब उसे अपने घर नहीं रख सकता। उसकी पत्नी को नदी में एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया था और एक मछुआरे ने उसकी मदद की थी इस बात से वो अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल रहा था और कह रहा था कि वो कोई श्री राम नहीं है जो उस स्त्री को अपना ले जो महीनों तक किसी और की बंधक बन कर रही हो।
यह सुनकर श्री राम को लगा कि उनसे उनकी प्रजा का नागरिक संतुष्ट नहीं है। एक महामूर्ख को संतुष्ट करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने माता सीता का त्याग कर दिया जिनका कहीं कोई दोष था ही नहीं। गुरु वाल्मीकि जी ने सीता जी को अपने आश्रम में शरण दी।
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