राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों भाई ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने गए।
सूर्य लोक में शिक्षा ग्रहण करते हुए संगीत की शिक्षा हनुमान जी को देवर्षि नारद जी से प्राप्त हुई। जब हनुमान जी की शिक्षा समाप्त हो गयी तब सूर्यदेव ने उनसे दक्षिणा में बाली के भाई सुग्रीव की रक्षा का वचन लिया। हनुमान जी ने वचन दिया कि वे हमेशा सुग्रीव के साथ रहेंगे, उसकी रक्षा करेंगे और उसके सचिव बनेंगे। इतना कह कर हनुमान जी किशकिन्दा की ओर चल दिए।
वशिष्ठ ऋषि के आश्रम से शिक्षा पूर्ण करने के बाद अयोध्या के चारों युवराज वापस राज महल लौट आये।
खर, मायाबी और दुन्दुबी नाम के तीन राक्षस रावण से मिलने आये। रावण ने उन्हें बाली के विषय में बताया कि किस प्रकार उसने उसे लज्जित किया है। इस बात का बदला लेने दुन्दुबी बाली से युद्ध करने गया और बाली के हाथों मातंग ऋषि के आश्रम में मारा गया। आश्रम में असुर की हत्या होने से पवित्रता भंग हुई जिससे मातंग ऋषि ने बाली को श्राप दिया कि अगर वो दोबारा आश्रम में पैर भी रखेगा तो उसके सर के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे।
राक्षसों का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। एक बार नारद जी ने देखा कि विश्वामित्र को बार बार यज्ञ छोड़ कर राक्षसों से भिड़ना पड़ता है। चूँकि विश्वामित्र पहले एक क्षत्रिय थे तो वे लड़ भी सकते थे परन्तु कोई और साधू कैसे लडेगा राक्षसों से? ये सोच कर नारद जी विश्वामित्र के पास पहुंचे और उन्हें कहा कि ये कैसी विडम्बना है? आप यज्ञ करोगे या इन राक्षसों से भिड़ोगे? आप दशरथ जी के पास जाइये और उनसे कहिये कि राक्षसों के उत्पात से वो आपको मुक्ति दिलाएं।
गुरु विश्वामित्र ने अयोध्या जाकर अपनी समस्या दशरथ जी को बताई तो उन्होंने राम और लक्ष्मण को उनके साथ भेज दिया।
क्षत्रीय से तपस्वी बनने की विश्वामित्र की सम्पूर्ण कहानी पढ़ें।
गुरु विश्वामित्र के यज्ञ कि रक्षा करते हुए श्री राम ने एक भयंकर राक्षसनी का वध किया जिसका नाम ताड़का था। तड़का के पुत्र मारीच ने भी हमला किया परन्तु श्री राम ने सभी कि रक्षा कि।
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