मंथरा को कैकई अपने बचपन से जानती थीं। मंथरा ने कैकई को भड़का दिया कि सबकुछ राम को मिलेगा और उनके पुत्र भरत को कुछ भी नहीं। नियति ने कैकई से वो करवा दिया जो वो कभी नहीं करती। उन्होंने राजा दशरथ को उनके दिए दो वचनों का स्मरण कराया और कहा कि वो राम को 14 वर्ष का वनवास दें और भरत को सिंहासन। राजा दशरथ अपने वचनों से बाध्य हो गए और उन्होंने फैंसला सुना दिया। उन्होंने हर संभव कोशिश की कि श्री राम उनकी बात ना मानें परन्तु अपने पिता का दिया वचन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पूरा ना करें ऐसा तो संभव ही नहीं और वचनों को पूरा करना तो रघुकुल की नीति है।
श्री राम, लक्ष्मण और सीता के साथ वन को चल दिए। राजा दशरथ अपने पुत्र के वियोग में तड़पने लगे जैसा कि उन्हें श्राप मिला था।
बाली की सेना का सेनापति गुणसुंदर हनुमान जी और सुग्रीव से ऋषियमूक पर्वत पर मिलता है और उन्हें बताता है कि बाली की सेना के बहुत से सैनिक उसके साथ रहना चाहते हैं और अब उन्हें खुद की सेना बनानी चाहिए। हनुमान जी ने प्रस्ताव को उचित बताया और सेना इकट्ठी करना आरम्भ किया। बाली की सेना के बहुत से सैनिक सुग्रीव के साथ आ गए। जामवंत जैसे बुद्धिमान और अनुभवी रीछ ने भी सुग्रीव का साथ दिया। जामवंत, ब्रह्मा जी के पुत्र थे।
लंका में तेज़ गडगडाहट के साथ बादल गरजे और मंदोदरी ने एक शक्तिशाली शिशु को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने मेघनाद रखा।
केवट श्री राम का अतुलनीय भक्त था। जब उसे पता चला कि श्री राम सरियु नदी से होकर गुजरेंगे तो उसने ही उन्हें अपनी नाव में सरियु नदी पार करायी। उधर अयोध्या में दशरथ जी कि हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। पुत्र वियोग में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
जब श्री राम को वनवास हुआ तब भरत अयोध्या में नहीं थे बल्कि अपने ननिहाल गए हुए थे। जब वे लौटे तब उन्हें पता चला कि उनके पिता की मृत्यु हो चुकी है और उनके भाई, भाभी को वनवास मिला। क्रोध में उन्होंने अपनी माता और मंदोदरी को धिक्कारना शुरू कर दिया। जब उन्हें कहा गया कि अब वे राजा हैं तो उन्होंने इनकार कर दिया और श्री राम की खोज में वन को चले गए।
बाली ने सुग्रीव की पत्नी रुमा को अपने कारावास में बंधक बना कर रखा था। हनुमान जी ने उसे मुक्त कराया और बाली की पत्नी तारा और पुत्र अंगद के पास जंगल में छोड़ आये। बाली की पत्नी और पुत्र ने बाली को पहले ही छोड़ दिया था और जंगले में रहने लगे थे।
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