देवी सुकन्या एक राजकुमारी थीं। एक दिन अपने पिता के साथ वे जंगल में शिकार करने गयीं। वहां वो अकेले ही भ्रमण करने लगीं। उन्होंने देखा कि एक जगह वाल्मी जमी हुई है। उसमें दो छेद भी थे। छेद से झाँकने पर उन्हें दो चमकते हुए रत्न दिखाई दिए। लकड़ी की सहायता से वो दोनों रत्नों को निकालने का प्रयास कर रही थीं कि छेद से खून बहने लगा और कोई जोर से चिल्लाया। वाल्मी में से एक ऋषि निकले जिनकी आँखें फूट चुकी थीं। ऋषि दर्द से कराह रहे थे। देवी सुकन्या को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने ऋषि से माफ़ी मांगी। ऋषि ने सब कुछ इश्वर की इच्छा मान कर देवी सुकन्या को क्षमा कर दिया।
देवी सुकन्या अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने अपने पिता से कहा कि वो ऋषि से विवाह करके उनकी पूरा जीवन सेवा करेंगी। राजा ने स्वीकार कर लिया। जब ऋषि को ये बात बताई तो उन्होंने कहा कि वो वृद्ध हैं और अंधे भी, वो देवी सुकन्या से विवाह करके उनके साथ अन्याय नहीं करेंगे। लेकिन देवी सुकन्या अपने हठ पर अडिग रहीं और ऋषि को बात माननी पड़ी। ये भृगु ऋषि के पुत्र च्यवन थे।
विवाह के बाद देवी सुकन्या ने अपने सतित्व और संस्कारों से भगवान् शिव को प्रसन्न किया। भगवान् शिव ने अश्विनीकुमार के दो पुत्रों को आदेश दिया कि वो जाकर च्यवन ऋषि को नेत्र और यौवन प्रदान करें परन्तु उससे पहले देवी सुकन्या के सतित्व की परीक्षा लें।
अश्विनीकुमार के पुत्रों ने देवी सुकन्या को कहा कि वो च्यवन को यौवन और नेत्र प्रदान करेंगे परन्तु उन्हें अपने सतित्व की परीक्षा देनी होगी। वो दोनो भी च्यवन का रूप धारण करेंगे और सुकन्या को पहचानना होगा कि उनके पति कौन हैं। देवी सुकन्या ने चुनौती स्वीकार की और अपने पति को एक नजर में पहचान लिया।
च्यवन ने श्री राम से कहा कि उनके आश्रम पर लवणासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा रखा है। वो उन्हें पूजा पाठ नहीं करने देता। शत्रुघ्न ने श्री राम से आज्ञा मांगी कि उसे राक्षस का वध करने का अवसर प्रदान किया जाए। श्री राम ने आज्ञा दे दी।
शत्रुघ्न मथुरा गए और वहां लवणासुर को चुनौती दी। लवणासुर मायावी था इसलिए उस पर शत्रुघ्न के सारे वार खाली जा रहे थे। अंत में शत्रुघ्न ने हनुमान जी का स्मरण किया। हनुमान जी उनके वाण पर बैठ गए और एक प्रहार में लवणासुर को यमलोक का मार्ग दिखा दिया।
नारद जी ऋषि दुर्वासा के पास पहुंचे और उन्हें याद दिलाया कि एक बार सीता जी ने उन्हें वचन दिया था कि वो उन्हें स्वादिष्ट भोजन करायेंगी परन्तु लगता है कि सीता जी अपना वो वचन भूल गयी हैं। ऋषि दुर्वासा, जो शिव के अंश हैं और अपने क्रोध और श्राप के लिए ही प्रसिद्द हैं, उन्हें सीता जी का वचन याद आया और तुरंत ऋषि वाल्मीकि के आश्रम पहुँच गए। दुर्वासा ने सीता जी को कहा कि अपना वचन कब पूरा करोगी? कभी करोगी भी या नहीं? हमें आज ही दिव्य भोजन कराओ कैसे भी कहीं से भी। हम अभी स्नान करके आते हैं तब तक भोजन तैयार हो जाना चाहिए।
सीता जी विचलित हो गयीं और हनुमान जी को याद किया। माता को परेशान देख कर हनुमान जी बोले कि अब मैं आ गया हूँ। आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। फिर हनुमान जी वाल्मीकि जी से इस मुसीबत का हल पूछने लगे। वाल्मीकि जी ने बताया कि स्वर्ग में कल्पतरु है जो पल भर में दिव्य भोजन प्रकट कर सकता है। हनुमान जी स्वर्ग पहुँच गए और कल्पतरु को उखाड़ने लगे। इंद्र ने उन्हें रोक दिया तो हनुमान जी ने विनती की कि आज सीता माता को इस वृक्ष की आवश्यकता है। वो कल्पतरु को उन्हें ले जाने दें। इंद्र ने इजाज़त दे दी और कहा कि आपका काम होते ही आप कल्पतरु को वापस स्वर्ग में छोड़ कर जायेंगे। हनुमान जी ने इंद्र को धन्यवाद कहा और सीता जी के पास आ गए।
कल्पतरु की मदद से दिव्य व्यंजन प्रकट हुए। दुर्वासा ऋषि ने व्यंजन देखे तो संदेह हुआ कि वन में व्यंजन कैसे बन सकते हैं। जब थोडा चख कर देखा तो पता चला कि वो सच में दिव्य व्यंजन थे। दुर्वासा को यकीन हो गया कि सीता अकेले इतना सब इंतजाम नहीं कर सकती हैं अवश्य किसी और की सहायता ली है। वो वहां से जाने लगे तो हनुमान जी हाथ जोड़ कर सामने आ गए। दुर्वासा क्रोध में बोले कि मेरे साथ छल हुआ है। सीता ने ये व्यंजन बनाने में किसी की सहायता ली है। तब हनुमान जी ने कहा कि सीता उनकी माता हैं और एक माता अपनी परेशानियों में अपने पुत्र की सहायता लेती है तो इसमें क्या गलत है?
हनुमान जी की भक्ति को देख कर दुर्वासा प्रसन्न हुए और फिर भर पेट भोजन किया और सीता माता को आशीर्वाद देकर वापस शमशान लौट गए।
महर्षि वाल्मीकि की कुटिया में देवी सीता प्रसव पीड़ा से कराह रहीं थीं। कोई उनकी सहायता करने वाला नहीं था। तभी धरती माता प्रकट हुईं और सीता माता को प्रसव में सहायता प्रदान की। माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया। फिर सीता जी ने आश्रम में उसका पालन-पोषण किया। गुरु वाल्मीकि जी ने उन्हें शिक्षा प्रदान की।
Panchang 16 December 2018 will list the Tithi, Ayana, Sunsign, Moonsign, Ritu, Sunrise, Sunset, Moonrise,…
Panchang 15 December 2018 will list the Tithi, Ayana, Sunsign, Moonsign, Ritu, Sunrise, Sunset, Moonrise,…
Panchang 14 December 2018 will list the Tithi, Ayana, Sunsign, Moonsign, Ritu, Sunrise, Sunset, Moonrise,…
Panchang 13 December 2018 will list the Tithi, Ayana, Sunsign, Moonsign, Ritu, Sunrise, Sunset, Moonrise,…
Panchang 12 December 2018 will list the Tithi, Ayana, Sunsign, Moonsign, Ritu, Sunrise, Sunset, Moonrise,…
Panchang 11 December 2018 will list the Tithi, Ayana, Sunsign, Moonsign, Ritu, Sunrise, Sunset, Moonrise,…
Leave a Comment