मेहंदीपुर के ज़मींदार ठाकुर गुमान सिंह अपने पुत्र मान सिंह के स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित थे। सभी वैद्यों को दिखा लिया परन्तु कोई बीमारी नहीं समझ सका। ऐसा लगता था कि उसके ऊपर किसी प्रेत का साया है। मान सिंह की हालत बहुत ख़राब थी। वो तड़पता रहता था।
किसी ने गुमान सिंह को कहा कि वो जाकर संत रामदास से मिलें। उनके पास हनुमान जी कि भक्ति की सिद्धियाँ हैं। रामदास जी ने मान सिंह को देखा। उन्होंने गुमान सिंह को कहा कि आप एक समृद्ध ज़मींदार हैं। आप मेहंदीपुर के पहाड़ों में एक मंदिर का निर्माण करिए। इसमें स्वयं हनुमान जी और बाबा भैरवनाथ निवास करेंगे। गुमान सिंह ने बिना विलम्ब किये मंदिर निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया।
मान सिंह को स्वस्थ करने के लिए संत रामदास, हनुमान जी कि भक्ति कर रहे थे तभी उन तक खबर पहुंची कि मंदिर अपने आप ही बन रहा है और कल तक तो तैयार भी हो जायेगा। तब उन्होंने कहा कि सुबह होते ही मान सिंह को मंदिर ले जाया जाए।
सुबह मंदिर में बाबा भैरवनाथ और हनुमान जी कि कृपा से मान सिंह को प्रेत से मुक्ति मिल गयी। मेहंदीपुर बालाजी उपरी चक्कर के रोगियों के लिए एकमात्र स्थान है।
कुछ डान्कुओं ने सालासर गाँव पर हमला कर दिया। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे। वे गाँव छोड़ने की बात कर रहे थे तभी मोहनदास ने उन्हें रोक दिया और कहा कि मेरे हनुमान जी ज़रूर आयेंगे और हमें इस संकट से मुक्ति दिलाएंगे। उसने हनुमान जी कि आराधना की और खबर आई कि चमत्कार हो गया। एक गदा प्रकट हुई और सभी डान्कुओं को उसने मार भगाया। सभी ने हनुमान जी और उनके भक्त मोहनदास कि जय जय कार की।
मोहनदास कि बहन, कान्हा बाई, को अपने भाई की शादी की चिंता थी। उसने ये बात ज़मींदार की पत्नी, गौराबाई, को कही और उनसे इस विषय में मदद करने कि गुजारिश की। उसी रात हनुमान जी गौराबाई के सपने में आये और उससे कहा कि मोहनदास मेरा परम भक्त है और वो आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता है। उसके लिए विवाह का सोचना व्यर्थ है। इसलिए उसे इस विषय में परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
हनुमान जी फिर मोहनदास के सपने में आये और उसे बताया कि वे उसकी असोटा गाँव के खेत में प्रतीक्षा कर रहे हैं। वो आया क्यों नहीं है अभी तक जबकि उन्होंने कान्हा बाई को पहले ही बता दिया है। ये सुन कर मोहनदास ने अपनी बहन को इस बारे में पुछा तो वो बोली इसका मतलब वो भूत सही कह रहा था। तब मोहनदास बोले कि वो कोई भूत नहीं मेरे प्रभु थे। तुम्हारे कारण मेरे प्रभु को मेरी प्रतीक्षा करनी पड़ी।
असोटा गाँव के ज़मींदार को लेकर मोहनदास खेत में पहुंचा तो उन्हें एक दिव्य पत्थर मिला जिस पर हनुमान जी का चेहरा अंकित था। ज़मींदार ने कहा कि हम हनुमान जी का भव्य मंदिर बनवायेंगे। तभी आवाज आई कि ये मूर्ति मोहनदास को दे दी जाए और सालासर में स्थापित की जाए।
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