श्री राम, माता सीता को खोजते हुए शबरी की कुटिया में पहुंचे। वहां शबरी ने एक एक बेर चख कर उन्हें खिलाया। उसने बताया कि ऋषियमूक पर्वत पर सुग्रीव है और श्री राम को उससे मिलना चाहिए। वो उनकी सहायता अवश्य करेगा।
ऋषियमूक पर्वत पर पहुँच कर श्री राम की भेंट हनुमान जी और सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने उन्हें बाली के विषय में बताया। श्री राम ने आश्वासन दिया कि वो उसकी मदद अवश्य करेंगे।
श्री राम के कहने पर सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा। बाली ने सुग्रीव को बहुत मारा परन्तु श्री राम ने उसका वध नहीं किया। सुग्रीव जान बचा कर मातंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा जहाँ बाली नहीं आ सकता था। फिर सुग्रीव ने श्री राम से बाण ना चलाने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि सुग्रीव और बाली बिलकुल एक जैसे दिखते हैं और वो समझ नहीं पाए कि बाली दोनो में से कौनसा है।
एक बार फिर सुग्रीव ने बाली को ललकारा परन्तु इस बार उसने पुष्पों की माला पहने हुई थी। युद्ध हुआ और बाली ने सुग्रीव को मारना प्रारंभ किया परन्तु श्री राम ने पेड़ के पीछे छिप कर उसे बाण मार दिया। बाली ने छिप कर मारने का कारण पूछा तो श्री राम ने कहा कि किसी बलशाली के वरदान का तिरस्कार नहीं किया जाता। वो चाहते तो सामने आकर उसका वध कर सकते थे परन्तु संसार कहता कि बाली को वरदान होने के बावजूद उसे सामने से मारा गया और वो कुछ नहीं कर पाया। परन्तु अब संसार बाली के बल को महान कहेगा और श्री राम के छुप कर प्रहार करने का तिरस्कार करेगा। बाली ने क्षमा मांगी और बोला कि इस जन्म में वो उनकी सहायता करने से वंचित रह गया। श्री राम ने उसे एक और वचन दिया कि द्वापर युग में उनके अवतार का अंत उसी के हाथों होगा।
मेघनाद और सुमाली ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में सुमाली की मृत्यु हुई पर देवताओं की हार हुई। मेघनाद का स्वर्ग पर आधिपत्य हो गया और वो इन्द्रजीत के नाम से प्रसिद्द हुआ। इंद्र को बंदी बना कर रावण ने अपने मायावी कारागार में कैद कर लिया।
रावण की माँ केकसी ने विश्रव ऋषि से सिर्फ रावण को जन्म देने के लिए ही विवाह किया था परन्तु जब अंत समय निकट आया तो उसे सिर्फ अपने पति की याद आई। उसने रावण को कहा कि वो उसे उसके पति के पास आश्रम में छोड़ आये। जीवन के अंतिम पल वो अपने पति के समक्ष रह कर ही बिताएगी। रावण उसे विश्रव ऋषि के आश्रम में छोड़ आया।
बाली के वध के बाद सुग्रीव को किशकिन्दा का राज्य मिल गया। वो सुख और एश्वर्य में ऐसा खो गया कि श्री राम को दिया हुआ वचन भी भुला बैठा। उसे चेतावनी देने और वचन याद दिलाने लक्ष्मण गए। सुग्रीव ने क्षमा मांगी और अंगद को किशकिन्दा का युवराज भी घोषित किया। सभी वानरों को सीता माता की खोज के लिए भेज दिया गया और समुद्र के तट पर मिलने का तय किया गया।
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