श्री राम ने लक्ष्मण जी को आज्ञा दी कि अभी श्री राम से कोई मिलने आने वाला है तो लक्ष्मण जी द्वार से किसी और को ना आने दें चाहे कितना भी आवश्यक कार्य क्यों ना हो। महाकाल श्री राम से मिलने आये। उन्होंने राम को बताया कि उनके अवतार का प्रयोजन पूर्ण हो चुका है और विधि के विधान के अनुसार अब उन्हें शरीर त्यागना होगा। इतने में दुर्वासा ऋषि आ गए जिनका क्रोध अत्यंत भयानक है और वो जो चाहते हैं वो करके ही रहते हैं। उन्होंने श्री राम से मिलने के लिए कहा परन्तु लक्ष्मण जी ने रोक दिया। वो लक्ष्मण जी के रोकने से नहीं रुके और अन्दर चले गए।
बाद में लक्ष्मण जी ने श्री राम से अपना कर्त्तव्य पूर्ण ना कर पाने के लिए क्षमा मांगी तो श्री राम ने कहा कि आज्ञा के उल्लंघन की क्षमा नहीं हो सकती। उन्हें दंड भोगना होगा। श्री राम ने हमेशा के लिए लक्ष्मण जी से सारे रिश्ते-नाते तोड़ दिए।
इस दुःख को लक्ष्मण जी सह नहीं पाए और सरियु में जल समाधी ले ली।
श्री राम ने जल समाधी से शरीर त्यागने का फैंसला किया और अयोध्या का भार भरत को सौंपना चाहा परन्तु भरत ने अस्वीकार कर दिया। फिर ऋषि वशिष्ठ की आज्ञा से कौशल प्रदेश के दो भाग किये जिसमें से दक्षिण कौशल कुश को सौंप दिया गया और उत्तर कौशल लव को। अयोध्या को राम राज्य ही रहने दिया।
श्री राम के साथ अयोध्या के बहुत से निवासी और भरत, शत्रुघ्न ने भी सरियु नदी में जल समाधी ली। हनुमान जी अकेले रह गए। उनकी नज़रों के सामने उनके प्रभु ने जल समाधी ले ली और वो अमरता रुपी अभिशाप के कारण अपने स्वामी के साथ नहीं जा पाए। आज हनुमान जी के दुखों की कोई सीमा नहीं है।
शुक्राचार्य ने लव-कुश, हनुमान जी और विभीषण से बदला लेने के लिए अन्य राक्षस प्रकट किये जिनका नाम विथिन्तासुर, पौन्ड्रक, शौन्ड्रक, विनाशासुर, कन्तिकासुर, मृदंगासुर थे। इनके साथ राक्षसी विरूपा भी थी।
विथिन्तासुर ने राजा भूरिकीर्ति कि पुत्री चम्पिका का अपहरण करने का प्रयास किया जिसे कुश ने रोक दिया। विथिन्तासुर ने मायावी युद्ध प्रारंभ किया तो कुछ ने हनुमान जी का स्मरण किया। हनुमान जी ने दैत्य की माया समाप्त कर दी और कुश ने राक्षस का वध कर दिया।
विथिन्तासुर के वध से सभी राक्षस विचलित हो गए। उन्होंने सोचा कि हनुमान जी कि शक्ति उनकी गदा में है। अगर वो गदा को चुरा लेंगे तो हनुमान जी कमजोर हो जायेंगे और वो उनका वध कर सकेंगे। विरूपा ने गदा चुरा ली। जैसे ही वो गदा राक्षसों कि गुफा में ले कर गयी, गदा ने सभी को पीटना शुरू कर दिया। बड़ी मुश्किल से सभी जान बचा कर भागे।
हनुमान जी ऋषि वशिष्ठ के पास पहुंचे और गदा का स्थान पुछा। वशिष्ठ ने अपनी दृष्टि से हनुमान जी को गदा का पता बताया और कहा कि अब उन्हें लव-कुश की सहायता से श्री राम और सीता जी के मंदिरों का निर्माण करना है। हनुमान जी को उनकी गदा वापस मिल गयी।
राजा भूरिकीर्ति ने अपनी पुत्री चम्पिका का स्वयंवर रखा। दैत्यों ने योजना बनाई कि कुश को स्वयंवर में मार दिया जाए क्योंकि वहां हनुमान नहीं आयेंगे। हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं उनका स्वयंवर में क्या काम। यह सोच कर दैत्यों ने आक्रमण कर दिया। कुश ने सभी का मुकाबला किया परन्तु दैत्यों की संख्या ज्यादा होने की वजह से स्थिति बेकाबू हो गयी। कुश ने हनुमान जी का स्मरण किया और हनुमान जी कि गदा प्रकट हो गयी। सभी दानवों की बहुत पिटाई हुई। कन्तिकासुर और विनाशासुर को कुश ने मार दिया। बाकी राक्षस भाग खड़े हुए। कुश का विवाह चम्पिका से हुआ और लव का विवाह राजा भूरिकीर्ति की दूसरी पुत्री सुनंदा से।
ऋषि वशिष्ठ के कहने पर हनुमान जी ने लव कुश को यज्ञ करने को कहा। दानवों ने यज्ञ में व्यवधान डालना शुरू कर दिया। हनुमान जी ने दैत्यों से यज्ञ की रक्षा की और मृदंगासुर का वध कर दिया।
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