लंका पहुँच कर हनुमान जी ने सर्वप्रथम रावण के मायाजाल से इंद्र देव को मुक्त किया। फिर देखा कि लंका के एक घर से श्री राम के जाप की आवाज आ रही है। अन्दर गए तो वहां विभीषण मिले। उनसे सीता माता और अशोक वाटिका का पता पूछा। अशोक वाटिका पहुँच कर सीता जी को अंगूठी दी और विश्वास दिलाया कि वे श्री राम के सेवक हैं और बहुत जल्द श्री राम उन्हें छुड़ाने वाले हैं।
हनुमान जी ने लंका में उत्पात मचा दिया। अनेकों राक्षसों को यमलोक पहुंचा दिया। रावण के पुत्र अक्षय कुमार भी हनुमान जी के हाथों मारा गया।
रावण ने हनुमान जी को पकड़ने के लिए मेघनाद को भेजा। उसने ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया जिसका हनुमान जी ने सम्मान करते हुए स्वयं को बंधन में कैद करवा लिया। मेघनाद हनुमान जी को लेकर रावण के पास पहुंचा।
रावण का ऊँचा सिंहासन देख कर हनुमान जी ने अपनी पूँछ से उससे भी बड़ा सिंहासन बनाया और उस पर जा कर बैठ गए। क्रोध में रावण ने हनुमान जी के ऊपर शस्त्र उठाने की चेष्टा की परन्तु विभीषण ने रोक दिया। रावण ने कहा कि इस वानर ने अपनी पूँछ से बहुत उत्पात मचाया है। वानर का मोह उसकी पूँछ से होता है इसलिए इसकी पूँछ में आग लगा दी जाये। हनुमान जी कि पूँछ में आग लगा दी गयी और हनुमान जी ने पूरी लंका जला दी। फिर सागर में पूँछ बुझा कर वापस लौट आये।
मेघनाद ने विश्वकर्मा को बंदी बनाया और लंका का पुनः निर्माण करवाया। इसके बदले में रावण ने उपहार देने की बात की तो विश्वकर्मा ने वचन लिया कि रावण कभी दोबारा स्वर्ग पर आक्रमण नहीं करेगा। रावण ने स्वीकार किया।
ऋषि अगस्त, श्री राम से मिलने उनके शिविर में पहुंचे। उन्होंने वहां विन्ध्याचल पर्वत की कहानी सुनाई। एक बार नारद जी ने देखा कि विन्ध्याचल पर्वत बहुत उदास है। उन्होंने उससे उसकी उदासी का कारण पुछा तो वो बोला कि मेरु पर्वत की ऊंचाई को देख कर वो हमेशा लज्जित होता रहता है। सभी पर्वतों में बहुत अभिमान है। में मेरु पर्वत से भी विशाल होकर आसमान को चीरकर स्वर्ग तक पहुंचना चाहता हूँ।
देवर्षि नारद बोले कि ये तो प्रकृति के नियम के विरुद्ध हो जायेगा क्योंकि इससे सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो जाएँगी। तुम शिव जी को प्रसन्न करो क्योंकि ब्रह्मा और विष्णु तुम्हारी बात कभी नहीं मानेंगे। परन्तु भोले शंकर सभी की मनोकामना पूर्ण कर देते हैं। विन्ध्याचल ने शिव की तपस्या की और वरदान स्वरुप मेरु पर्वत से भी ऊँचा होना माँगा।
वरदान के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त होने लगा। तब ऋषि अगस्त आये और उन्होंने देखा कि विन्ध्याचल के कारण अब दक्षिण में जाना असंभव हो गया है। उन्होंने विन्ध्याचल को झुकने को कहा तो विन्ध्याचल बोला कि उसने बड़े तप से ये वरदान प्राप्त किया है। ऋषि अगस्त बोले कि वरदान तुमने सभी पर्वतों का अभिमान तोड़ने के लिए लिया था जो हो चूका है। अब श्रृष्टि के कल्याण के लिए झुक जाओ और जब तक मैं वापस ना आ जाऊ, तुम झुके ही रहना।
विन्ध्याचल नीचे झुक गया और अगस्त ऋषि की प्रतीक्षा करने लगा। ऋषि अगस्त वापस आये ही नहीं।
ऋषि अगस्त ने श्री राम को विजयी होने के लिए शिव जी की पूजा करने की सलाह दी। समुद्र तट पर श्री राम ने एक शिव लिंग बनाया। हनुमान जी कैलाश पहुंचे और शिव जी को मनाने लगे कि वो शीघ्र श्री राम को दर्शन देकर उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दें। शिव जी प्रकट हुए और श्री राम को आशीर्वाद दिया कि वे इस युद्ध में विजयी होंगे। शिव जी और पार्वती जी ने अपनी ज्योति श्री राम के बनाए शिवलिंग में प्रज्वलित की और उसे रामेश्वरम का नाम दिया।
Narsimha was the incarnation of Vishnu which He took to save his dear devotee Prahlad…
In Narsimha incarnation, Saptarishi cursed Narayana that one day He will be swallowed by someone.…
Adi was the son of Andhak. He did a hard austerity of Brahma dev and got…
Rishi Durvasa Cursed Indra There is a story behind Sanjeevani Vidhya of Shukracharya. Once Rishi…
Rishi Durvasa is the son of Mata Anusuiya and Rishi Attri. He is known for…
Manasa - Sister of Vasuki snake Vasuki, the snake on the neck of Shiva, was…
Leave a Comment