बगासुर नाम के एक राक्षस को भीम ने मार डाला तो उसका भाई बयासुर अर्जुन से बदला लेने पहुँच गया। अर्जुन ने एक वाण में उसका वध कर दिया। अर्जुन अपनी धनुर्विद्या पर गर्व करता हुआ आगे बढ़ा। मार्ग में उसे एक नदी दिखी। उसने नदी से कहा कि वो उसके मार्ग से हट जाए वरना वो अपने वाणों से उसे सुखा देगा। नदी कि देवी बाहर निकली और उन्होंने कहा कि मैं तो सदियों से यहाँ बहती आ रही हूँ फिर मैं कैसे आपके मार्ग में आ गयी? इस पर अर्जुन बोला कि वो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है। कौन किसके मार्ग में आया वो नहीं जानता। नदी को हटना होगा वरना वो उसे सुखा देगा। नदी ने विनती की कि अगर वो उसे सुखा देगा तो जल के जीव बेवजह मारे जायेंगे। उससे बेहतर है कि वो अपने वाणों से सेतु बना कर नदी पार कर ले। अर्जुन को सुझाव पसंद आया और उसने सेतु बना कर नदी पार कर ली।
थोड़ी दूर चलने पर उसे एक और नदी दिखी जिस पर पत्थरों का सेतु बना हुआ था और एक वानर बैठा हुआ था। अर्जुन ने मजाक बनाते हुए कहा कि ना जाने लोग पत्थरों का सेतु क्यों बनाते हैं। अगर उसको बोला होता तो वो वाणों का सेतु बना देता। हनुमान जी बोले कि वाणों का सेतु कमजोर होता है वो वजन सहन नहीं कर सकता इसलिए पत्थरों का सेतु बनाया जाता है। अगर ऐसा नहीं होता तो त्रेता युग में श्री राम अपने वाणों से ही सेतु का निर्माण करते।
अर्जुन अपने घमंड में चूर अपनी सीमाएं लांघ गया। वो बोला कि उसके जैसा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के वाणों का सेतु कभी नहीं टूटता। हनुमान जी बोले कि वो संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अवश्य है परन्तु युग-युगांतर के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर श्री राम थे। अर्जुन चिल्लाते हुए बोला, हे वानर मेरा अपमान मत करो। में ही हर युग का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हूँ।
हनुमान जी ने कहा, तो ठीक है वाणों का सेतु बनाओ अभी पता चल जायेगा। अर्जुन ने कहा कि अगर सेतु टूट गया तो वो अपने प्राण त्याग देगा। अर्जुन ने सेतु बनाया और हनुमान जी के पैर रखते ही वो बिखर गया। यह देख कर अर्जुन शर्म से झुक गया। वो हनुमान जी से क्षमा मांगने लगा और कहने लगा कि अपने अभिमान के लिए वो शर्मिंदा है। हनुमान जी बोले कि उसने अभिमान के चलते एक बहुत बड़ा पाप कर दिया है। उसने श्री राम का अपमान किया है। अर्जुन रोते हुए बोला, सच कहा वानर श्रेष्ठ आपने। मैंने वो पाप किया है जिसकी माफ़ी नहीं है। इसलिए मैं स्वयं को समाप्त कर रहा हूँ। इतना कह कर उसने अपने वाणों से चिता बनाई और उसमे प्रवेश करने ही वाला था कि हनुमान जी ने श्री कृष्ण को याद किया।
श्री कृष्ण मछुआरे के वेश में दौड़ते हुए आये और कहा, अरे भाई ये क्या हो रहा है? बिना लाश की चिता? ये सब क्या है भाई? अर्जुन बोला कि ये मेरी चिता है। कृष्ण बोले, भैयाजी काहे जान देने पर तुले हो? ऐसा क्या कर दिया? अर्जुन बोला, मैंने अपने घमंड में श्री राम का अपमान कर दिया। कृष्ण बोले, तो भैया माफ़ी मांग लो ना। जान देने की क्या बात है। और घमंड की कौनसी बात थी ज़रा हमें भी तो बताओ। अर्जुन बोला, मैंने वाणों का सेतु बनाया और कपि श्रेष्ठ के पैर रखते ही वो बिखर गया। कृष्ण बोले, अभी के अभी दूसरा सेतु बनाओ। ज़रा हम भी तो देखें वाणों का सेतु कैसा होता है और पैर रखते ही कैसे बिखर सकता है।
अर्जुन ने दूसरा सेतु बनाया और श्री कृष्ण की आज्ञा से हनुमान जी उस सेतु पर खड़े हुए परन्तु इस बार सेतु नहीं टूटा। अर्जुन की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई। सेतु नहीं टूटा और अभिमान टूट गया। श्री राम से क्षमा मांग कर उसने हनुमान जी से उनका परिचय पूछा और होने वाले महाविनाशक युद्ध के लिए उनका समर्थन माँगा।
बलराम ने अपनी मुष्ठी के एक प्रहार से पौन्ड्रक के महाकाय दुविध वानर का संहार कर दिया तो उन्हें ऐसा लगने लगा कि उनकी मुष्ठी कोई महाविनाशक शस्त्र बन चुकी है। श्री कृष्ण की आज्ञा से हनुमान जी उनके बगीचे में पहुँच गए और फल खाने के लिए पेड़ों को उखाड़ने लगे। ये बात सैनिकों ने बलराम को बताई। वो बाग़ में आये तो उन्होंने एक वृद्ध वानर को फल खाते हुए देखा। श्री कृष्ण ने सोचा कि आज दाऊ को पता चलेगा कि बल किसे कहते हैं और बल का गुरुर किसे।
बलराम ने वानर को ललकारा तो उसने अनसुना कर दिया। बलराम को क्रोध आया तो हनुमान जी ने युद्ध के लिए चुनौती दे दी। हनुमान जी ने बलराम पर प्रहार नहीं किया अपितु सिर्फ प्रहार रोके। बलराम पूरी शक्ति लगाने पर भी हनुमान जी कि गदा नीचे नहीं कर पा रहे थे। हनुमान जी के थक्के से बलराम दूर हो गए। इतनी शक्ति एक वृद्ध वानर में देख कर बलराम चकित रह गए। तभी श्री कृष्ण, देवी रुक्मणि के साथ वहां प्रकट हुए और बलराम को हनुमान जी का बताया। फिर तीनों ने हनुमान जी को राम, सीता और लक्ष्मण रूप में दर्शन दिए जिससे हनुमान जी कि पूर्ण दर्शन की मनोकामना पूर्ण हो गयी।
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